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________________ जैन कला एवं स्थापत्य ६१३ खजुराहो का पार्श्वनाथ मन्दिर : उत्तर भारत में खजुराहो जैनधर्म का प्रधान केन्द्र था। वहाँ पर बने मंदिरों में से एक तिहाई जैन मन्दिर हैं। जैन मन्दिरों में पार्श्वनाथ का मन्दिर सबसे बड़ा और सबसे सुन्दर है। वहाँ के अन्य मन्दिरों की तरह यह भी ई.सन् ९५०-१०५० के बीच का बना हुआ मालूम पड़ता है। यह ६२ फीट लम्बा व ३१ फीट चौड़ा है। इसकी बाहरी दीवारें अनेक अलंकरण पट्टियों तथा मूर्तियों की तीन पंक्तियों से सुशोभित है। देलवाड़ा के जैन मन्दिर : आबू की पहाड़ी पर स्थित देलवाड़ा क्षेत्र में चार मुख्य जैन मन्दिर हैं जिनमें से दो सबसे अधिक प्रसिद्ध हैं और किसी दृष्टि से भारत के सभी मन्दिरों में अग्रगण्य हैं। दोनों में से जो अधिक पुराना है और विमलवसही के नाम से जाना जाता है वह विमलशाह नामक एक धनी जैन श्रावक के द्वारा सन १०३१ में बनवाया गया था तथा प्रथम तीर्थकर आदिनाथ (भगवान ऋषभदेव) को समर्पित किया गया था। दूसरा मन्दिर सन् १२३० में तेजपाल और वस्तुपाल नामक दो धनी जैन भाइयों के द्वारा निर्मित हुआ था तथा २२वें तीर्थंकर नेमिनाथ (अरिष्टनेमि) को समर्पित किया गया था। विमलशाह, तेजपाल तथा वस्तुपाल गुजरात के मन्त्री थे। दोनों मन्दिरों का विन्यास समान है । दोनों अपेक्षाकृत बाहर से सादे हैं पर भीतर की सजावट अनोखी है । दोनों पूर्णतः सफेद संगमरमर के बने हैं। चार हजार फीट से भी अधिक ऊँची पहाड़ी पर इनकी स्थिति बड़ी ही मनोहारी है। दोनों ही मन्दिर चौकोर आंगन के बीच खडे हैं जिनके चारों चरफ तीर्थंकरों तथा अन्य देवताओं की मूर्तियों से सजी हुई देवकुलिकाएँ हैं । मूल प्रासाद पर पिरामिडीय शिखर है । उससे लगा हुआ एक गूढ़मंडप है । उसके सामने एक खुला हुआ रंगमण्डप या सभामण्डप बना हुआ है जो स्तम्भों से सुसज्जित है तया जिसका गुम्बदाकार छत आठ स्तम्भों पर आधारित है । वितानों, स्तम्भों, दरवाजों, चौखटों तथा गवाक्षों की महीन कारीगरी अत्यन्त सुन्दर है । संगमरमर की लहरदार, पतली, पारदर्शक शिल्पकारी अति उत्कृष्ट है । मन्दिर की सम्पूर्ण Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002139
Book TitleJain Dharma Darshan Ek Samikshatmak Parichay
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMohanlal Mehta
PublisherMutha Chhaganlal Memorial Foundation Bangalore
Publication Year1999
Total Pages658
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Philosophy
File Size21 MB
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