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________________ ५६२ जैन धर्म-दर्शन का पालन करना अर्थात् महीने में कम से कम एक रात कायोत्सर्ग अवस्था में ध्यानपूर्वक व्यतीत करना । छठी प्रतिमा का नाम ब्रह्मचर्यप्रतिमा है क्योंकि इसमें श्रावक दिन की भाँति रात्रि में भी ब्रह्मचर्य का पालन करता है । इस प्रतिमा में सर्व प्रकार के सचित्त आहार का परित्याग नहीं होता । सातवीं प्रतिमा में सभी प्रकार के सचित्त आहार का परित्याग कर दिया जाता है किन्तु आरम्भ (कृषि, व्यापार आदि में होने वाली अल्प हिंसा) का त्याग नहीं किया जाता । इस प्रतिमा का नाम है सचित्तत्यागप्रतिमा । आठवीं प्रतिमा का नाम आरम्भत्यागप्रतिमा है । इसमें उपासक स्वयं तो आरंभ करने का त्याग कर देता है किन्तु दूसरों से आरंभ करवाने का त्याग नहीं करता । नवीं प्रतिमा धारण करनेवाला श्रावक आरंभ करवाने का भी त्याग कर देता है । इस अवस्था में वह उद्दिष्ट भक्त अर्थात् अपने निमित्त से बने हुए भोजन का त्याग नहीं करता । इस प्रतिमा का नाम प्रेष्यपरित्यागप्रतिमा है क्योंकि इसमें आरंभ के निमित्त किसी को कहीं भेजने भिजवाने का त्याग होता है । आरंभवर्धक परिग्रह का त्याग होने के कारण इसे परिग्रहत्यागप्रतिमा भी कहते हैं । दसवीं प्रतिमा में उद्दिष्ट भक्त का भी त्याग कर दिया जाता है । इस प्रतिमा में स्थित श्रमणोपासक उस्तरे से मुण्डित होता हुआ शिखा धारण करता है अर्थात् सिर को एकदम साफ न कराता हुआ चोटी जितने बाल सिर पर रखता है । दसवीं Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002139
Book TitleJain Dharma Darshan Ek Samikshatmak Parichay
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMohanlal Mehta
PublisherMutha Chhaganlal Memorial Foundation Bangalore
Publication Year1999
Total Pages658
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Philosophy
File Size21 MB
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