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आचारशास्त्र
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देखे-सुने किसी के विषय में कुछ धारणा बना लेना अथवा निर्णय दे देना, किसी पर मिथ्या कलंक लगाना, किसी के प्रति लोगों में गलत धारणा पैदा करना, सज्जन को दुर्जन, गुणी को अवगुणी, ज्ञानी को अज्ञानी कहना आदि सहसा-अभ्याख्यान अतिचार के अतर्गत हैं । किसी की गुप्त बात किसी के सामने प्रकट कर उसके साथ विश्वासघात करना रहस्य-अभ्याख्यान है। पति-पत्नी का एक-दूसरे की गुप्त बातों को किसी अन्य के सामने प्रकट करना स्वदार अथवा स्वपति-मंत्रभेद है । किसी को सच-झूठ समझाकर कुमार्ग पर ले जाना मृपोपदेश है। झूठे लेख लिखना, झूठे दस्तावेज तैयार करना, झूठे हस्ताक्षर करना अथवा झूठा अंगूठा लगाना, झठे बही-खाते तैयार करना, झूठे सिक्के बनाना अथवा चलाना आदि कूट-लेखकरण अतिचार के अन्तर्गत हैं । श्रावक को इन सबसे तथा इस प्रकार के अन्य अतिचारों से बचना चाहिए। उसे सदा सावधान रहकर सत्य की आराधना करनी चाहिए। ..३. स्थूल अदत्तादान-विरमण-अहिंसा व सत्य के सम्यक पालन के लिए अत्रीर्य अर्थात् अदत्तादान-विरमण आवश्यक है। श्रावक के लिए जिस प्रकार का अचौर्य अथवा अस्तेय आवश्यक माना गया है उसे स्थूल अदत्तादान-विरमण कहते हैं । साधु के लिए तो विना अनुमति के दंतशोधनार्थ तृण उठाना भी वजित है अर्थात् वह बिना दी हुई कोई भी वस्तु ग्रहण नहीं करता। श्रावक के लिए ऐसा आवश्यक नहीं माना गया है। वह सूक्ष्म अदत्तादान का त्याग न भी करे तथापि उसे स्थूल अदत्तादान का त्याग तो करना ही पड़ता है । अदत्तादान का शब्दार्थ है बिना दी हुई वस्तु. (अदत्त) का ग्रहण (आदान) । इसे सामान्य भाषा में चोरी कहते हैं । श्रावक के लिए ऐसी चोरी का त्याग अनि
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