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________________ आचारशास्त्र १२१ घमणों के विभिन्न प्रकार : - मूलाचार के समयसार नामक दसवें प्रकरण में मुनि के लिए चार प्रकार का लिंगकल्प (आचारचिह्न) बताया गया है : १. अचेलकत्व, २. लोंच, ३. व्युत्सृष्टशरीरता, ४. प्रति. लेखन । अचेलकत्व का अर्थ है वस्त्रादि सर्व परिग्रह का परिहार । लोंच का अर्थ है अपने अथवा दूसरे के हाथों से मस्तकादि के केशों का अपनयन । व्युत्सृष्ट शरीरता का अर्थ है स्नान-अभ्यंगन-अंजन-परिमर्दन आदि सर्व संस्कारों का अभाव । प्रतिलेखन का अर्थ है मयूरपिच्छ का ग्रहण । अचेलकत्व नि:संगता अर्थात् अनासक्ति का चिह्न है । लोंच सद्भावना का संकेत है । व्युत्सृष्टशरीरता अपरागता का प्रतीक है। प्रतिलेखन दयाप्रतिपालन का चिह्न है। यह चार प्रकार का लिंगकल्प चारित्रोपकारक होने के कारण आचरणीय है। - आचारांग के प्रथम श्रुतस्कन्ध के धूत नामक छठे अध्ययन में स्पष्ट बतलाया गया है कि कुछ अनगार ऐसे भी होते हैं जो संयम ग्रहण करने के बाद एकाग्रचित्त होकर सब प्रकार की आसक्ति का त्याग कर एकत्व-भावना का अवलम्बन लेकर मुण्ड होकर अचेल बन जाते हैं अर्थात् वस्त्र का भी त्याग कर देते हैं तथा आहार में भी क्रमशः कमी करते हुए सर्व कष्टों को सहन कर अपने कर्मों का क्षय करते हैं । ऐसे मुनियों को वस्त्र फटने की, नये लाने की, सूई-धागा जुटाने की, वस्त्र सीने की कोई चिन्ता नहीं रहती। वे अपने को लघु अर्थात् हलका (भारमुक्त) तथा सहज तप का भागी मानते हुए सब प्रकार के कष्टों को समभावपूर्वक सहन करते हैं । विमोक्ष नामक आठवें अध्ययन में अचेलक मुनि के विषय में कहा गया है कि यदि उसके मन में यह विचार आए कि मैं नग्नताजन्य शीतादि सहन कर, नये लाने की वे अपने को लहुए सब प्र Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002139
Book TitleJain Dharma Darshan Ek Samikshatmak Parichay
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMohanlal Mehta
PublisherMutha Chhaganlal Memorial Foundation Bangalore
Publication Year1999
Total Pages658
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Philosophy
File Size21 MB
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