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जैन धर्म-दर्शन
डर रहता है उसी प्रकार संयमी श्रमण को स्त्री के शरीर एवं संयत श्रमणी को पुरुष की काया से सदा भय रहता है। वे स्त्री-पुरुष के रूप, रंग, चित्र आदि देखना तथा गीत आदि सुनना भी पाप समझते हैं। यदि उस ओर दृष्टि चली भी जाय तो वे तुरन्त सावधान होकर अपनी दृष्टि को खींच लेते हैं।' वे बाल, युवा एवं वृद्ध सभी प्रकार के नर-नारियों से दूर रहते हैं। इतना ही नहीं, वे किसी भी प्रकार के कामोत्तेजक अथवा इन्द्रियाकर्षक पदार्थ से अपना सम्बन्ध नहीं जोड़ते।
ब्रह्मचर्यव्रत के पालन के लिए पांच भावनाएं निम्नोक्त रूप में बतलाई गई हैं : १. स्त्री-कथा न करना, २. स्त्री के अंगों का अवलोकन न करना, ३. पूर्वानुभूत काम-क्रीड़ा आदि का स्मरण न करना, ४. मात्रा का अतिक्रमण कर भोजन न करना, ५. स्त्री आदि से सम्बद्ध स्थान में न रहना।२ जिस प्रकार श्रमण के लिए स्त्री-कथा आदि का निषेध है उसी प्रकार श्रमणी के लिए पुरुष-कथा आदि का प्रतिषेध है। ये एवं इसी प्रकार की अन्य भावनाएं सर्वमैथुन-विरमण व्रत की सफलता के लिए अनिवार्य हैं।
सर्वविरत श्रमण के लिए सर्वपरिग्रह-विरमण भी अनिवार्य है। किसी भी वस्तु का ममत्वमूलक संग्रह परिग्रह कहलाता है। सर्वविरत श्रमण स्वयं इस प्रकार का संग्रह नहीं करता, दूसरों से नहीं कराता और करने वालों का समर्थन
१. वही, ८.५४-५५. २. आचारांग, :,३.
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