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स्वर्गीय श्रेष्टिवर्य छगनमलजी मूथा दक्षिण भारत का जन-जीवन राजस्थान की संस्कृति एवं सभ्यता से ओतप्रोत एवं प्रभावित रहा है । अन्तिम दो शताब्दियों में राजस्थान के कुशल व्यापारी दक्षिण भारत में व्यापारार्थ आये और उन्होंने अपनी दूरदर्शिता, मितव्ययिता, परिश्रमशीलता एवं व्यापारिक विचक्षणता से अर्थोपार्जन ही नहीं किया अपितु स्थानीय मानवसमाज के जीवन-विकास में तन-मन-धन से सक्रिय सहयोग देकर सबका हार्दिक प्रेम भी प्राप्त किया।
सेठ श्री छगनमलजी मूलतः खारची (मारवाड़ जंक्शन के समीप) के निवासी थे । वे जेतारण के पास बर्दा ग्राम के श्रेष्ठिवर्य दानवीर श्री शंभूमलजी गंगारामजी मूथा के यहाँ गोद गये थे । श्री मूथाजी के व्यापारिक प्रतिष्ठान की कर्नाटक तथा राजस्थान के अनेक स्थानों पर शाखाएँ चलती थीं । यह प्रतिष्ठान श्री शंभूमलजी गंगारामजी मूथा के नामसे प्रसिद्ध एवं प्रतिष्ठित था । प्रामाणिकता, दानशीलता एवं स्वधर्मी-वत्सलता आदि गुण-गरिमा से इस प्रतिष्ठान की प्रतिष्ठा देश के कोने-कोने में नामांकित हो चुकी थी। बेंगलोर के अशोकनगर में इस प्रतिष्ठान का विशाल कारोबार चलता था ।
जैन समाज के ज्योतिर्धर आचार्य श्री जवाहरलालजी के क्रान्तदर्शी जीवनोपदेश से मूथा परिवार और विशेषतः सेठ श्री छगनमलजी मूथा बहुत प्रभावित थे और महात्मा गांधी के अहिंसा एवं अनेकान्तमूलक सर्वोदयी रचनात्मक कार्यों को गतिशील बनाने में तन - मन - धन से सक्रिय सहयोग देने में अपने जीवनको धन्य समझते थे। महात्मा गांधी श्री मूथाजी की राष्ट्रीय भावना देखकर उनके बंगले पर भी पधारे थे तब उन्होंने हरिजन कोष में अच्छी धनराशि देकर गांधीजी का अभिनंदन किया था । श्री मूथाजी गांधी विचारधारा के अनुयायियों की आर्थिक स्थिति सुधारने में भी गुप्त आर्थिक योगदान देते रहते थे।
राजस्थान के मुख्यमंत्री श्री मोहनलालजी सुखाड़िया और भारत सरकारके शिक्षामंत्री श्री काललालजी श्रीमाली जब क्रमशः कर्नाटक के राज्यपाल और मैसूर विश्वविद्यालय के कुलपति के रूपमें बेंगलोर में पधारे तब वे दोनों राजस्थान के सपूत श्री मूथाजी को स्वजन-आत्मीय समझकर सर्वप्रथम उनके
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