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कमसिद्धान्त
४२३ चन्द्रकान्तमणि जल के लिए एवं वटवृक्ष जटाओं के लिए हेतुभूत है वैसे ही ब्रह्म सम्पूर्ण जगत् के प्राणियों की सृष्टि, स्थिति तथा संहार के लिए निमित्तभूत है।' इस प्रकार ब्रह्मवाद के मतानुसार ब्रह्म ही संसार के समस्त पदार्थों का उपादानकारण है। ईश्वरवादियों का मन्तव्य है कि स्वयंसिद्ध चेतन और जड़ द्रव्यों (पदार्थों ) के पारस्परिक संयोजन में ईश्वर निमित्तभूत है। जगत् का कोई भी कार्य ईश्वर की इच्छा के बिना नहीं हो सकता। इस प्रकार ईश्वरवाद के मतानुसार ईश्वर संसार की समस्त घटनाओं का निमित्तकारण है। वह स्वयंसिद्ध जड़ और चेतन पदार्थों ( उपादानकारण ) का नियन्त्रक एवं नियामक ( निमित्तकारण ) है-विश्व का संयोजक एवं व्यवस्थापक है।
देववाद-देववाद और भाग्यवाद एकार्थक हैं। केवल पूर्वकृत कर्मों के आधार पर बैठे रहना एवं किसी प्रकार का पुरुषार्थ अर्थात् प्रयत्न न करना दैववाद है। इसमें स्वतन्त्रतावाद अर्थात् इच्छा-स्वातन्त्र्य का कोई स्थान नहीं है। सारा घटनाचक्र अनिवार्यतावाद अर्थात् परतन्त्रता के आधार पर चलता है। प्राणी अपने भाग्य का दास है। उसे असहाय होकर अपने पूर्वकृत कर्मों का फल भोगना पड़ता है। वह इन कर्मों को न तो शीघ्र या देर से ही भोग सकता है और न उनमें किसी प्रकार का परिवर्तन ही कर सकता है। जिस समय जिस कर्म का जिस रूप में फल भोगना नियत होता है उस समय उस कर्म का उसी रूप में फल भोगना पड़ता है। देववाद और १. प्रमेयकमलमार्तण्ड, पृ० ६५. २. आप्तमीमांसा (का. ८८-९१) में देव और पुरुषार्थ का समन्वय
किया गया है।
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