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जैन धर्म-दर्शन काल-जिस समय किसी वस्तु में अस्तित्व धर्म होता है उसी समय अन्य धर्म भी होते हैं । घट में जिस समय अस्तित्व रहता है उसी समय कृष्णत्व, स्थूलत्व, कठिनत्व आदि धम भी रहते हैं। इसलिए काल की अपेक्षा से अन्य धर्म अस्तित्व से अभिन्न हैं।
आत्मरूप-जिस प्रकार अस्तित्व घट का गुण है उसी प्रकार कृष्णत्व, कठिनत्व आदि भी घट के गुण हैं । अस्तित्व के समान अन्य गुण भी घटात्मक ही हैं। अतः आत्मरूप की दृष्टि से अस्तित्व और अन्य गुणों में अभेद है। ___ अर्थ-जिस घट में अस्तित्व है उसी घट में कृष्णत्व, कठिनत्व आदि धर्म भी हैं। सभी धर्मों का स्थान एक ही है । अतः अर्थ की दृष्टि से अस्तित्व और अन्य गुणों में कोई भेद नहीं।
सम्बन्ध-जिस प्रकार अस्तित्व का घट से सम्बन्ध है उसी प्रकार अन्य धर्म भी घट से सम्बन्धित हैं । सम्बन्ध की दृष्टि से अस्तित्व और इतरगुण अभिन्न हैं।
उपकार-अस्तित्व गुण घट का जो उपकार करता है वही उपकार कृष्णत्व, कठिनत्व आदि गुण भी करते हैं। इसलिए यदि उपकार की दृष्टि से देखा जाय तो अस्तित्व और अन्य गुणों में अभेद है।
गुणिदेश-जिस देश में अस्तित्व रहता है उसी देश में घट के अन्य गुण भी रहते हैं। घट रूप गुणी के देश की दृष्टि से देखा जाय तो अस्तित्व और अन्य गुणों में कोई भेद नहीं। ___ संसर्ग-जिस प्रकार अस्तित्व गुण का घट से संसर्ग है उसी प्रकार अन्य गुणों का भी घट से संसर्ग है। इसलिए संसर्ग की दृष्टि से देखने पर अस्तित्व और इतरगुणों में कोई भेद दृष्टि
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