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________________ सापेक्षवाद ३५१ दव्य का सूक्ष्मतम प्रदेश क्षेत्रपरमाणु है। समय का सूक्ष्मतम प्रदेश कालपरमाणु है। द्रव्य-परमाणु में वर्णादिपर्याय की विवक्षा होने पर जिस परमाणु का ग्रहण होता है वह भावपरमाण है। ___ जैन दर्शन के अतिरिक्त अन्य भारतीय दर्शन ( वैशेषिक आदि ) द्रव्य-परमाणु को एकान्त नित्य मानते हैं। वे उसमें तनिक भी परिवर्तन नहीं मानते। परमाणु का कार्य अनित्य हो सकता है, परमाणु स्वयं नहीं। __ महावीर ने इस सिद्धान्त को नहीं माना। उन्होंने अपने अमोघ अस्त्र स्याद्वाद का यहाँ भी प्रयोग किया और परमाणु को नित्य और अनित्य दोनों प्रकार का माना : भगवन् ! परमाणु-पुद्गल शाश्वत है या अशाश्वत ? गौतम ! स्याद् शाश्वत है. स्याद् अशाश्वत है। यह कैसे ? गौतम ! द्रव्याथिक दृष्टि से शाश्वत है। वर्णपर्याय यावत् । स्पर्शपर्याय की दृष्टि से अशाश्वत है।' ___ अन्यत्र भी पुद्गल की नित्यता का प्रतिपादन करते हुए यही बात कही कि द्रव्यदृष्टि से पुद्गल नित्य है। उन्होंने स्पष्ट कहा कि तीनों कालों में ऐसा कोई क्षण नहीं जिस समय पुद्गल पुद्गलरूप में न हो। इसी प्रकार पुद्गल की १. परमाणुपोग्गले णं भंते ! कि सासए असासए ? गोयमा ! सिय सासए सिय असासए । से केणठेणं.....? गोयमा ! दन्वट्ठयाए सासए, वनपज्ज वेहिं जाव फासपज्जवेहि असासए। --वही, १४.४.५१२. २. वही, १.४.४२. स्पर्शपर्याय का पुद्गल कीट से पुद्गल क्षण नहीं www.jainelibrary.org Jain Education International For Private & Personal Use Only
SR No.002139
Book TitleJain Dharma Darshan Ek Samikshatmak Parichay
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMohanlal Mehta
PublisherMutha Chhaganlal Memorial Foundation Bangalore
Publication Year1999
Total Pages658
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Philosophy
File Size21 MB
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