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ज्ञानमीमांसा
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देखकर रस का अनुमान करना अथवा रस- दर्शन से रूप का अनुमान करना सहभावी अविनाभाव है। एक के होने पर दूसरे का होना क्रमभाव है । कृत्तिका के उदित होने पर शकट का उदय होना क्रमभावी अविनाभाव है । कारण और कार्य का सम्बन्ध भी कमभाव के अन्तर्गत आता है । अग्नि से धूम की उत्पत्ति क्रमभावी अविनाभाव है । इस प्रकार के अविनाभाव का जब व्यक्ति स्वतः ज्ञान करता है और साध्य के साथ अविनाभावी साधन को देखकर स्वयं साध्य का अनुमान करता है तब जो ज्ञान पैदा होता है वह स्वार्थानुमान है। स्वार्थानुमान के लिए एक व्यक्ति दूसरे व्यक्ति पर निर्भर नहीं रहता । साधन को देखकर साध्य का अनुमान व्यक्ति स्वयं कर लेता है । इसलिए इस प्रकार के अनुमान का नाम 'स्वार्थानुमान' अर्थात् 'अपने लिए अनुमान' है ।
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साधन -- साधन कितने प्रकार के हैं, इस पर भी जरा विचार कर लें | आचार्य हेमचन्द्र ने पाँच प्रकार के साधन माने हैं। ये पाँच प्रकार हैं- स्वभाव, कारण, कार्य, एकार्थसमवायी और विरोधी । "
वस्तु का स्वभाव ही जहाँ साधन ( हेतु ) बनता है वह स्वभावसाधन है । 'अग्नि जलाती है क्योंकि वह उष्णस्वभाव है,' 'शब्द अनित्य है क्योंकि वह कार्य हैं' आदि स्वभावसाधन या स्वभावहेतु के उदाहरण हैं ।
अमुक प्रकार के मेघ देखकर वर्षा का अनुमान करना कारण साधन है । जिस प्रकार के बादलों के नभ में आने पर वर्षा होती है वैसे बादलों को देखकर वर्षा होने का अनुमान १. स्वभाव: कारणं कार्यमेकार्थसमवायि विरोधि चेति पंचधा साधनम् । - प्रमाणमीमांसा, १.२.१२.
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