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________________ शानमीमांसा ३०५ प्रायःसाधोपनीत-जैसा गौ है वैसा गवय है, जैसा गवय है वैसा गो है। यहाँ गौ और गवय का बहुत-कुछ साधर्म्य है । यह प्रायःसाधोपनीत का उदाहरण है। __सर्वसाधोपनीत-जब किसी व्यक्ति की उपमा उसी व्यक्ति से दी जाती है तब सर्वसाधोपनीत उपमान होता है । अरिहंत अरिहंत ही है, चक्रवर्ती चक्रवर्ती ही है-इत्यादि प्रयोग सर्वसाधोपनीत के उदाहरण हैं । वास्तव में यह कोई उपमान नहीं है। इसे तो उपमान का निषेध कह सकते हैं । उपमा अन्य वस्तु की अन्य वस्तु से दी जाती है। वैधोपनीत भी तीन प्रकार का है-किंचिद्वैधोपनीत, प्रायोवैधोपनीत और सर्ववैधोपनीत । किंचिद्वैधोपनीत-इसका उदाहरण दिया गया है कि जैसा शाबलेय है वैसा बाहुलेय नहीं है, जैसा बाहुलेय है वैसा शाबलेय नहीं है। प्रायोवैधोपनीत-जैसा वायस है वैसा पायस नहीं है, जैसा पायस है वैसा वायस नहीं है। यह प्रायोवैधोपनीत का उदाहरण है। सर्ववैधोपनीत-इसका उदाहरण दिया गया है कि नीच ने नीच जैसा ही किया, दास ने दास जैसा ही किया। यह उदाहरण ठीक नहीं। इसमें तो सर्वसाधोपनीत का ही आभास मिलता है। कोई ऐसा उदाहरण देना चाहिए जिसमें दो विरोधी वस्तुएँ हों। नीच और सज्जन, दास और स्वामी आदि उदाहरण दिये जा सकते हैं। आगम-आगम के दो भेद किये गये हैं-लौकिक और लोकोत्तर। २० Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002139
Book TitleJain Dharma Darshan Ek Samikshatmak Parichay
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMohanlal Mehta
PublisherMutha Chhaganlal Memorial Foundation Bangalore
Publication Year1999
Total Pages658
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Philosophy
File Size21 MB
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