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________________ शानमीमांसा में भिक्षा प्राप्त होती देखकर यह अनुमान करना कि सुभिक्ष है, प्रत्युत्पन्न कालग्रहण है। ३. अनागतकालग्रहण-मेघों की निर्मलता, काले-काले पहाड़, विद्युत्युक्त बादल, मेघगर्जन, वातोद्भम, रक्त और स्निग्ध सन्ध्या आदि देखकर यह सिद्ध करना कि खूब वर्षा होगी, अनागतकालग्रहण है। ___ इन तीनों लक्षणों की विपरीत प्रतीति से विपरीत अनुमान किया जा सकता है। सूखे वनों को देखकर कुवृष्टि का, भिक्षा की प्राप्ति न होने पर दुर्भिक्ष का और खाली बादल देखकर वर्षा के अभाव का अनुमान करना विपरीत प्रतीति के उदाहरण हैं। ____ अनुमान के अवयव-मूल आगमों में अवयव की चर्चा नहीं है। अवयव का अर्थ होता है दूसरों को समझाने के लिए जो अनुमान का प्रयोग किया जाता है उसके हिस्से। किस ढंग से अनुमान का प्रयोग करना चाहिए ? उसके लिए किस ढंग से वाक्यों की संगति बैठानी चाहिए ? अधिक से अधिक कितने वाक्य होने चाहिए ? कम से कम कितने वाक्यों का प्रयोग होना चाहिए? इत्यादि बातों का विचार अवयव-चर्चा में किया जाता है । आचार्य भद्रबाहु ने दशवकालिकनियुक्ति में अवयवों की चर्चा की है। उन्होंने दो से लगाकर दस अवयवों तक के प्रयोग का समर्थन किया है।' दस अवयवों को भी उन्होंने दो प्रकार से गिनाये हैं। दो अवयवों की गणना में उदाहरण का १. कत्थइ पंचावयवयं दसहा वा सव्वहा ण पडिकुत्थंति । --दशवकालिकनियुक्ति, ५०. २. दशवकालिकनियुक्ति, ६२. Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002139
Book TitleJain Dharma Darshan Ek Samikshatmak Parichay
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMohanlal Mehta
PublisherMutha Chhaganlal Memorial Foundation Bangalore
Publication Year1999
Total Pages658
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Philosophy
File Size21 MB
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