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जैन परम्परा का इतिहास
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आग्रह पर ध्यान नहीं दिया । वर्षावास के अन्त में जब उन्होंने उस स्थान को छोड़ दिया तब गोशाल ने उनसे फिर प्रार्थना की। इस बार उन्होंने उसे शिष्यरूप में अंगीकार कर लिया और दोनों एक लम्बी अवधि तक साथ रहे । जब दोनों सिद्धार्थपुर में ठहरे हुए थे तब गोशाल ने महावीर की एक तिल के पौधे में फल लगने की भविष्यवाणी को चुनौती देते हुए उसे उखाड़ कर फेंक दिया। संयोगवश वर्षा हुई जिससे वह पौधा फिर हराभरा हो गया और उसमें फल लग गये । यह देखकर गोशाल ने ऐसा घोषित किया कि सभी चीजें पूर्व निश्चित हैं और सभी जीवों में पुनः जीवित होने की क्षमता है । महावीर ने इस सिद्धान्त को स्वीकार नहीं किया । तब गोशाल ने महावीर से अपना संबंध विच्छेद कर लिया और आजीविक नामक एक नये सम्प्रदाय को जन्म दिया ।
महावीर ने पश्चिम बंगाल के लाढ़ प्रदेश तक भ्रमण किया। वहाँ पर वज्रभूमि तथा शुभ्रभूमि के जनार्य क्षेत्र में उन्हें सब तरह की यातनाएं सहनी पड़ीं। प्रतिकूल जलवायु, कांटेदार झाड़ियों, विषैले जन्तुओं तथा उन लोगों के कारण जो उनके पीछे कुत्ते दौड़ा दिया करते थे, महावीर के सामने बहुत-सी विपदाएं आई। उन्होंने अपना नवां चातुर्मास लाढ़ प्रदेश में ही बिताया ।
विभिन्न बाधाओं एवं आपदाओं के होते हुए भी महावीर स्थिरचित्त हो बारह वर्ष तक कठिन तपस्या में लीन रहे । तेरहवें वर्ष की वैशाख शुक्ला दशमी को जूं भिकग्राम के बाहर ऋजुपालिका नदी के उत्तर तट पर श्यामाक गृहस्थ के खेत में शालवृक्ष के नीचे उस महान् तपस्वी को सर्वज्ञत्व की प्राप्ति
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