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जैन धर्म-दर्शन आदि परोक्षान्तर्गत हैं।' इन्द्रियप्रत्यक्ष के चार भेद बताए गए हैं-अवग्रह, ईहा, अवाय और धारणा। इनके अवान्तर भेद भी है, जिनका निर्देश आगे किया जाएगा। अनिन्द्रिय प्रत्यक्ष के स्मृति, संज्ञा आदि भेद हैं। यहाँ पर हम अवग्रह, ईहा, अवाय और धारणा के स्वरूप का विचार करेंगे। ये चारों मतिज्ञान के मुख्य भेद हैं। इसके पहले इन्द्रिय और मन का क्या अर्थ है, यह देख लें। इन्द्रिय :
आत्मा की स्वाभाविक शक्ति पर कर्म का. आवरण होने से सीधा आत्मा से ज्ञान नहीं हो सकता। इसके लिए किसी माध्यम की आवश्यकता रहती है। यह माध्यम इन्द्रिय है। जिसकी सहायता से ज्ञान का लाभ हो सके वह इन्द्रिय है। ऐसी इन्द्रियाँ पाँच है--स्पर्शन, रसन, घ्राण, चक्षु और श्रोत्र । सांख्य आदि दर्शन वाक, पाणि आदि कर्मेन्द्रियों को भी इंद्रिय-संख्या में गिनते हैं। ज्ञानेन्द्रियां पाँच ही हैं। प्रत्येक इन्द्रिय दो प्रकार की होती हैद्रव्येन्द्रिय और भावेन्द्रिय । पुद्गल का ढाँचा द्रव्येन्द्रिय है और आत्मा का परिणाम भावेन्द्रिय है। द्रव्येन्द्रिय के पुनः दो भेद हैंनिर्वृत्ति और उपकरण । इन्द्रियों की आभ्यन्तर आकृतियाँ निर्वृत्ति द्रव्येन्द्रिय है एवं बाह्य आकृतियाँ उपकरण द्रव्येन्द्रिय है । भावेन्द्रिय भी लब्धि और उपयोग रूप से दो प्रकार की है। ज्ञानावरण कर्म आदि के क्षयोपशम से प्राप्त होने वाली आत्मिक शक्ति-विशेष लब्धि है । लब्धि प्राप्त होने पर आत्मा एक विशेष प्रकार का
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१. वही, ६१.
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