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तत्त्वविचार
२३६ व्यन्तरों एवं ज्योतिष्कों में प्रायस्त्रिंग और लोकपाल को छोड़ शेष आठ पद ही होते हैं।' ___ ब्रह्म अथवा ब्रह्मलोक नामक पांचवें स्वर्ग (कल्प) के चारों ओर दिशाओं-विदिशाओं में लोकान्तिक' देव रहते हैं। ये विषयरति से रहित होने के कारण देवर्षि कहलाते हैं। इनमें पारस्परिक उच्च-नीच भाव का अभाव होता है। ये तीर्थङ्करों के अभिनिष्क्रमण अर्थात् गृहत्याग के समय उनके सामने उपस्थित होकर प्रतिबोध देने का अपना आचार पालते हैं। ____ ग्यारहवीं-बारहवीं शती के आसपास में हिन्दुओं के प्रभाव से जैनधर्म में अनेक नवीन देव-देवियों का प्रवेश हुआ। इनकी संख्या धीरे-धीरे बढ़ती गई। इनमें कुछ प्रमुख देवियों के नाम इस प्रकार हैं : अम्बिका, चक्रेश्वरी, ज्वालिनी अथवा ज्वालामालिनी, पद्मावती, चामुण्डा, महादेवी, भारती अथवा सरस्वती। इनमें से कुछ के नाम तीर्थङ्करों की शासनदेवियों के रूप में आते हैं। ___ ऋषभदेव आदि चौबीस तीर्थङ्करों के यक्षों, शासनदेवियों एवं लांछनों के नाम इस प्रकार हैं
तीर्थङ्कर यक्ष शासनदेवी लांछन १. ऋषभदेव गोमुख चक्रेश्वरी बैल
(आदिनाथ) २. अजितनाथ महायक्ष अजिता । ३. संभवनाथ
त्रिमुख
दुरितारि घोड़ा ४. अभिनन्दन
ईश्वर
काली बंदर ५. सुमतिनाथ तुंबुरु
महाकाली क्रौंच १. वही, ४. ४-५. २. सर्वार्थ सिद्धि, ४. २४-२५. ३. प्रवचनसारोद्धार, गा० ३७३-७६, ३७६-८०.
हाथी
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