________________
तत्त्वविचार
२२३ वर्तना कहलाता है । काल ऐसे परिवर्तन का कारण है जिसमें स्थायित्व विद्यमान होता है। काल से निरन्वय विनाश नहीं होना अपितु वर्तना होती है- सान्वय परिवर्तन होता है। इस प्रकार काल प्रत्येक वस्तु के स्वाभाविक परिवर्तन का माध्यम अथवा सहायक कारण है । काल अथवा परिवर्तन को व्यावहारिक दृष्टि से नापने - समझने के लिए विविध संकेतों अथवा प्रतीकों का आधार लिया जाता है ।
परिवर्तन और स्थायित्व पदार्थ के स्वाभाविक धर्म हैं । क्या इसके लिए किसी अन्य कारण अथवा माध्यम की आवश्यकता है ? क्या काल के माध्यम के बिना पदार्थों में परिवर्तन नहीं हो सकता ? माना कि परिवर्तन के लिए काल नामक तत्त्व आवश्यक है । अब प्रश्न यह है कि काल पर-परिवर्तन का कारण है अथवा स्व-परिवर्तन का अथवा दोनों का ? स्पष्ट है कि काल को केवल पर-परिवर्तन अथवा केवल स्व-परिवर्तन का कारण नहीं माना जा सकता । उसे स्व-परप्रकाशक दीपक की भाँति दोनों प्रकार के परिवर्तन का कारण मानना पड़ेगा अर्थात् जीवादि पदार्थों के परिवर्तन अथवा वर्तना के लिए तो काल नामक एक स्वतन्त्र तत्त्व की सहायता की आवश्यकता है किन्तु काल के स्वयं के परिवर्तन के लिए किसी अन्य तत्त्व की सहायता की आवश्यकता नहीं है । काल अपने स्वभाव के अनुसार स्वतः परिवर्तित होता रहता है। जैसे काल स्वत: परिवर्तनशील है वैसे क्या जीवादि पदार्थ स्वतः परिवर्तनशील नहीं हो सकते ? उनके परिवर्तन के लिए किसी अन्य सहायक की क्या आवश्यकता है ? इसका उत्तर यह है कि जैसे दीपक स्वतः प्रकाशित होता हुआ अन्य पदार्थों को प्रकाशित करता है वैसे ही काल स्वतः परिवर्तित होता हुआ जीवादि को परि
Jain Education International
For Private & Personal Use Only
www.jainelibrary.org