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तत्त्वविचार
२.५ सकते हैं ।' जब जीव के तीन शरीर होते हैं तो तेजस, कार्मण
और औदारिक या तेजस, कार्मण और वैक्रिय, जब चार होते हैं तो तेजस, कार्मण, औदारिक और वैक्रिय या तेजस, कार्मण,
औदारिक और आहारक समझने चाहिए। पाँच शरीर एक साथ नहीं होते क्योंकि वैक्रिय लब्धि और आहारक लब्धि का उपयोग एक साथ नहीं हो सकता । वैक्रिय लब्धि के प्रयोग के समय एवं शरीर बना लेने पर भी नियमतः प्रमत्त दशा होती है.२ किन्तु आहारक शरीर के विषय में यह बात नहीं है। आहारक लब्धि का प्रयोग तो प्रमत्त दशा में होता है, किन्तु आहारक शरीर बना लेने के बाद शुद्ध अध्यवसाय होने के कारण अप्रमत्तावस्था रहती है । अतः एक साथ इन दो शरीरों का रहना सम्भव नहीं। शक्तिरूप से एक साथ पाँचों शरीर रह सकते हैं क्योंकि आहारक एवं वैक्रिय लब्धि का साथ रहना सम्भव है किन्तु उनका प्रयोग एक साथ नहीं हो सकता, अतः पाँचों शरीर अभिव्यक्ति रूप से एक साथ नहीं रह सकते। इस चर्चा के साथ शरीरचर्चा और साथ-ही-साथ पुद्गल-चर्चा भी समाप्त होती है। धर्म : ____ जीव और पुद्गल गति करते हैं । इस गति के लिए किसीन-किसी माध्यम की आवश्यकता है। यह माध्यम धर्म द्रव्य है। चूंकि यह अस्तिकाय है इसलिए इसे धर्मास्तिकाय भी कहते हैं। कोई यह शंका कर सकता है कि गति करने के लिए किसी माध्यम की क्या आवश्यकता है ? क्या जीव और पुद्गल स्वयं गति नहीं कर सकते ? इसका समाधान यह है कि गति तो जीव १. वही, २.४१-४४. २. तत्त्वार्थ भाष्यवृत्ति, २. ४४.
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