________________
३५२
३५३ ३५६
३५८
३५९ ३६५
३७४ ३८२
३९४
३९५
३९६
३९८
३९९
(१३) एकता और अनेकता अस्ति और नास्ति आगमों में स्याद्वाद अनेकान्तवाद और स्याद्वाद स्याद्वाद और सप्तभंगी भंगों का आगमकालीन रूप सप्तभंगी दोष-परिहार नयवाद द्रव्यार्थिक एवं पर्यायार्थिक दृष्टि द्रव्यार्थिक एवं प्रदेशार्थिक दृष्टि • व्यावहारिक तथा नैश्चयिक दृष्टि
अर्थनय और शब्दनय नय के भेद नयों का पारस्परिक सम्बन्ध कर्मसिद्धान्त कर्मवाद और इच्छा-स्वातन्त्र्य कर्मवाद व अन्य वाद जैन सिद्धान्त का मन्तव्य कर्म का अस्तित्व कर्म का मूर्तत्व कर्म, आत्मा और शरीर आगम-साहित्य में कर्मवाद कर्म का स्वरूप कर्मबन्ध का कारण कर्मबन्ध की प्रक्रिया कर्म का उदय और क्षय कर्मप्रकृति अर्थात् कर्मफल कर्म की स्थिति कर्मफल की तीवता-मन्दता
४००
४११ ४१३-५०३
४१४
०
४१६
४२४
४२५
४२७ ४२८
४२९
४४२ ४५८
४५९ ४६०. ४६१
४७७
X/0/
Jain Education International
national
For Private & Personal Use Only
www.jainelibrary.org