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________________ उत्तर भारत के जैन मूर्ति अवशेषों का ऐतिहासिक सर्वेक्षण ] में जिनों के नामोल्लेख की कुषाणकालीन परम्परा गुप्त युग में मथुरा में तो नहीं, पर विदिशा में अवश्य लोकप्रिय थी। मध्य प्रदेश के सिरा पहाड़ी (पन्ना जिला)' एवं बेसनगर (ग्वालियर) से भी कुछ गुप्तकालीन जिन मूर्तियां मिली हैं। कहौम कहौम (देवरिया, उ० प्र०) के ४६१ ई० के एक स्तम्भ लेख में पांच जिन मूर्तियों के स्थापित किये जाने का उल्लेख है। स्तम्भ की पांच कायोत्सर्ग एवं दिगम्बर जिन मूर्तियों की पहचान ऋषभ, शान्ति, नेमि, पार्श्व एवं महावीर से की गई है । सीतापुर (उ० प्र०) से भी एक जिन मूर्ति मिली है।" वाराणसी वाराणसी से मिलो ल. छठीं शती ई० की एक ध्यानस्थ महावीर मूर्ति भारत कला भवन, वाराणसी (१६१) में संगृहीत है (चित्र ३५)। राजगिर की नेमि मूर्ति के समान ही इसमें भी धर्मचक्र के दोनों ओर महावीर के सिंह लांछन उत्कीर्ण हैं। वाराणसी से मिली और राज्य संग्रहालय, लखनऊ (४९-१९९) में सुरक्षित ल० छठी-सातवीं शती ई० की एक अजितनाथ की मूर्ति में भी पीठिका पर गज लांछन की दो आकृतियां उत्कीर्ण हैं। अकोटा - अकोटा (बड़ौदा, गुजरात) से चार गुप्तकालीन कांस्य मूर्तियां मिली हैं। पांचवीं-छठी शती ई०की इन श्वेतांबर मूर्तियों में दो ऋषभ की और दो जीवन्तस्वामी महावीर की हैं (चित्र ५, ३६)। सभी में मूलनायक कायोत्सर्ग में खड़े हैं । एक ऋषभ मूर्ति में धर्मचक्र के दोनों ओर दो मृग और पीठिका छोरों पर यक्ष-यक्षी निरूपित हैं। यक्ष-यक्षी के निरूपण का यह प्राचीनतम ज्ञात उदाहरण है। द्विभुज यक्ष-यक्षी सर्वानुभूति एवं अम्बिका हैं ।१० खेड्ब्रह्मा एवं वलभी से भी छठी शती ई० की कुछ जैन मूर्तियां मिली हैं।११ चौसा . चौसा से ६ गुप्तकालीन जिन मूर्तियां मिली हैं, जो सम्प्रति पटना संग्रहालय में हैं।१२ दो उदाहरणों में (पटना। संग्रहालय ६५५३, ६५५४) लटकती केश वल्लरियों से युक्त जिन ऋषभ हैं। दो अन्य जिनों (पटना संग्रहालय ६५५१, १ वाजपेयी, के० डी०, 'मध्यप्रदेश की प्राचीन जैन कला', अनेकान्त, वर्ष १७, अं. ३, पृ० ११५-१६ २ स्ट००आ०, पृ० १४ ३ का०ई०६०, खं० ३, पृ० ६५-६८ ४ शाह, सी० जे०, जैनिजम इन नार्थ इण्डिया, लन्दन, १९३२, पृ० २०९ ५ निगम, एम० एल०, 'ग्लिम्प्सेस ऑव जैनिज़म श्रू आकिंअलाजी इन उत्तर प्रदेश', मजै०वि०गोजुवा०, बंबई, १९६८, पृ० २१८ ६ शाह, यू० पी०, 'ए फ्यू जैन इमेजेज इन दि भारत कला भवन, वाराणसी', छवि, पृ० २३४; तिवारी, एम० • एन० पी०, 'ऐन अन्पब्लिश्ड जिन इमेज़ इन दि भारत कला भवन, वाराणसो', वि०ई०ज०, खं० १३, अं० १-२, पृ० ३७३-७५ ७ शर्मा, आर० सी०, 'जैन स्कल्पचर्स ऑव दि गुप्त एज इन दि स्टेट म्यूजियम, लखनऊ', म००वि०गोजु०वा०, बम्बई, १९६८, पृ० १५५ ८ शाह, यू० पी०, अकोटा ब्रोन्जेज, बम्बई, १९५९, पृ० २६-२९-अकोटा की जैन मूर्तियां श्वेताम्बर परम्परा की प्राचीनतम जैन मूर्तियां हैं। ९ वही, पृ० २८-२९, फलक १० ए, बी०, ११ १० देवताओं के आयुधों की गणना यहां एवं अन्यत्र निचली दाहिनी भुजा से प्रारम्भ कर घड़ी की सुई की गति के - अनुसार की गई है। ११ स्ट००आ०, पृ० १६-१७ १२ प्रसाद, एच० के०, पू०नि०, पृ० २८२-८३ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002137
Book TitleJain Pratimavigyan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMaruti Nandan Prasad Tiwari
PublisherParshwanath Shodhpith Varanasi
Publication Year1981
Total Pages370
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Culture
File Size13 MB
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