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________________ [ जैन प्रतिमाविज्ञान गणेश हिन्दु देवकूल के लोकप्रिय देवता गणेश या गणपति को ल० ग्यारहवीं-बारहवीं शती ई० में जैन देवकुल में सम्मिलित किया गया ।' यद्यपि अभिधान-चिन्तामणि (१२वीं शती ई०) में गणेश का उल्लेख है। पर उनकी लाक्षणिक विशेषताएं सर्वप्रथम आचारदिनकर में विवेचित हैं। जैन ग्रन्थों में निरूपण के पूर्व ही ग्यारहवीं शती ई० में ओसिया की प्रवेश-दारों एवं भित्तियों पर गणेश का मतं अंकन देखा जा सकता है। यह तथ्य एवं जैन गणेश की लाक्षणिक विशेषताएं स्पष्टतः हिन्दू गणेश के प्रभाव का संकेत देती हैं। पुरातात्विक संग्रहालय, मथुरा की ल० दसवीं शती ई० की एक अम्बिका मूर्ति (क्र० ०० डी ७) में गणेश की मूर्ति भी अंकित है। बारहवीं शती ई० को कुछ स्वतन्त्र मूर्तियां कुंभारिया (नेमिनाथ मन्दिर) एवं नाडलई से प्राप्त होती हैं (चित्र ७७)। गणेश की लोकप्रियता श्वेताम्बरों तक सीमित थी। ब्रह्मशान्ति यक्ष स्तुति चतुविशतिका (शोभनसूरिकृत)" एवं निर्वाणकलिका में ही सर्वप्रथम ब्रह्मशान्ति यक्ष की लाक्षणिक विशेषताएं वर्णित हैं । विविधतीर्थकल्प (जिनप्रभसूरिकृत) के सत्यपुर तीर्थकल्प में ब्रह्मशान्ति यक्ष के पूर्व जन्म की कथा दी है । दसवीं से बारहवीं शती ई० के मध्य की ब्रह्मशान्ति यक्ष की मतियां घाणेराव के महावीर. कंभारिया के शान्तिनाथ, महावीर एवं पार्श्वनाथ मन्दिरों और विमलवसही से प्राप्त होती हैं । ब्रह्मशान्ति यक्ष केवल श्वेताम्बरों के मध्य ही लोकप्रिय थे। जटामुकुट, छत्र, अक्षमाला, कमण्डलु और कभी-कभी हंसवाहन का प्रदर्शन ब्रह्मशान्ति पर हिन्द्र ब्रह्मा का प्रभाव दर्शाता है। कपर्दी यक्ष ___ स्तुति चतुर्विशतिका में कपर्दी यक्ष का यक्षराज के रूप में उल्लेख है । विविधतीर्थकल्प एवं शत्रुजय-माहात्म्य (धनेश्वरसूरिकृत-ल० ११०० ई०) में कपर्दी यक्ष से सम्बन्धित विस्तृत उल्लेख हैं। शत्रुजय पहाड़ी एवं विमलवसही से कपर्दो यक्ष के मूतं चित्रण प्राप्त होते हैं। कपर्दी यक्ष की लोकप्रियता श्वेताम्बरों तक सीमित थी। यू०पी० शाह ने कपर्दी यक्ष को शिव से प्रभावित माना है।'' १ तिवारी, एम० एन० पी०, 'सम अन्पब्लिश्ड जैन स्कल्पचर्स ऑव गणेश फाम वेस्टर्न इण्डिया', जैन जर्नल, खं०९, ___ अं० ३, पृ० ९०-१२ २ अभिधानचिन्तामणि २.१२१ ३ आचारदिनकर, भाग २, गणपतिप्रतिष्ठा १-२, पृ० २१० ४ हिन्द्र गणेश के समान ही जैन गणेश भी गजनुख एवं लम्बोदर और मूषक पर आरूढ़ हैं। उनके करों में स्वदंत, __ परशु, मोदकपात्र, पद्म, अंकुश, एवं अभय-या-वरद-मुद्रा प्रदर्शित हैं। ५ स्तुति चतुर्विशतिका १६.४, पृ० १७९ ६ निर्वाणकलिका २१, पृ० ३८ ७ विविधतीर्थकल्प, प० २८-३० ८ स्तुति चतुर्विशतिका १९.४, पृ० २१५ ९ शाह, यू० पी०, 'ब्रह्मशान्ति ऐण्ड कपर्दी यक्षज'; ज०एम०एस०यू०ब०, खं० ७, अं० १, पृ.० ६५-६८ १० वही, पृ० ६८ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002137
Book TitleJain Pratimavigyan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMaruti Nandan Prasad Tiwari
PublisherParshwanath Shodhpith Varanasi
Publication Year1981
Total Pages370
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Culture
File Size13 MB
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