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[जैन प्रतिमाविज्ञान
इन्द्र द्वारा जिनों के जन्म अभिषेक और समवसरण के निर्माण के उल्लेख हैं। जिनों के जीवनवृत्तों के अंकन में ग्यारहवींबारहवीं शती ई० में इन्द्र को आमूर्तित किया गया। इसके उदाहरण ओसिया, कुंभारिया और दिलवाड़ा के जैन मन्दिरों में प्राप्त होते हैं। नैगमेषी
जैन देवकुल में अजमुख नैगमेषी (या हरिनैगमेषी या हरिणैगमेषी) इन्द्र के पदाति सेना के सेनापति हैं। अन्तगड्वसाओ एवं कल्पसत्र में नैगमेषी को बालकों के जन्म से भी सम्बन्धित बताया गया है। कल्पसत्र में उल्लेख है कि शकेन्द्र ने महावीर के भ्रूण को ब्राह्मणी देवानन्दा के गर्भ से क्षत्रियाणी त्रिशला के गर्भ में स्थापित करने का कार्य अपनी पदाति सेना के अधिपति हरिणगमेषी देव को दिया।४ अन्तगड़वसाओ में पुत्र प्राप्ति के लिए हरिण्नैगमेषी के पूजन और प्रसन्न होकर देवता द्वारा गले का हार देने के उल्लेख हैं।" उपर्युक्त परम्परा के कारण ही जैन शिल्प में नगमेषी के साथ लम्बा हार एवं बालक प्रदर्शित हुए । मथुरा से नैगमेषी की कई कुषाण कालीन स्वतन्त्र मूर्तियां मिली हैं। मथुरा से प्राप्त महावीर के गर्भापहरण के दृश्य का चित्रण करने वाले एक कुषाण कालीन फलक पर भी अजमुख नेगमेषी निरूपित है (चित्र ३९)। लेख में "भगवा नेमेसो' उत्कीर्ण है। कुषाण युग के बाद नैगमेषी की स्वतन्त्र मूर्तियां नहीं प्राप्त होतीं। पर जिनों के जन्म से सम्बन्धित दृश्यों में नगमेषी का अंकन श्वेताम्बर स्थलों पर आगे भी लोकप्रिय रहा । यक्ष
प्राचीन भारतीय साहित्य में यक्षों के अनेक उल्लेख हैं । ये उपकार और अपकार के कर्ता माने गये हैं। कुमारस्वामी के अनुसार यक्षों और देवों के बीच कोई विशेष भेद नहीं था और यक्ष शब्द देव का समानार्थी था। पवाया की माणिभद्र यक्ष मूर्ति (पहली शती ई० पू०) भगवान् के रूप में पूजित थी। जैन ग्रन्थों में भी यक्षों का अधिकांशतः देव के रूप में उल्लेख है। उत्तराध्ययनसत्र में उल्लेख है कि संचित सत्कर्मों के प्रभाव को भोगने के बाद यक्ष पुनः मनुष्य रूप में जन्म लेते हैं।
जैन साहित्य में भी यक्षों के प्रचुर उल्लेख हैं ।'' भगवतीसूत्र में वैश्रमण के प्रति पुत्र के समान आज्ञाकारी १३ यक्षों की सूची दी है ।१ ये पुन्नमद्द, माणिभद्द, शालिभद्द, सुमणभद्द, चक्क, रक्ख, पुण्णरक्ख, सव्वन (सर्वण्ह ?), सव्वजस, समिध्ध, अमोह, असंग और सव्वकाम हैं । तत्त्वार्थसूत्र २ (उमास्वातिकृत) में भी एक स्थल पर १३ यक्षों की सूची है ।१३ इसमें पूर्णभद्र, माणिभद्र , सुमनोभद्र, श्वेतभद्र, हरिभद्र, व्यतिपातिकभद्र, सुभद्र, सर्वतोभद्र, मनुष्ययक्ष, वनाधिपति, वनाहार, रूपयक्ष और यक्षोतम के नाम हैं।१४
१ पउमचरिय ३.७६-८८
२ जन्म, दीक्षा एवं कैवल्य प्राप्ति से सम्बन्धित दृश्यांकन । ३ हिन्दू देवकुल में स्कन्द देवताओं के सेनापति हैं-विस्तार के लिए द्रष्टव्य, अग्रवाल, वी० एस०, “ए नोट आन दि गाड नगमेष', ज०यू०पी०हिसो०, खं० २०, भाग १-२, पृ.० ६८-७३; शाह, यू० पी०, 'हरिनंगमेषिन्',
ज०ई०सी०ओ०आ०, खं० १९, पृ० १९-४१ ४ कल्पसूत्र २०-२८
५ अन्तगड्वसाओ, पृ०६६-६७ ।। ६ राज्य संग्रहालय, लखनऊ-जे ६२६ ७ कुमारस्वामी, यक्षज़, भाग १, दिल्ली, १९७१ (पु० मु०), पृ०३६-३७ ८ वही, पृ० ११, २८
९ उत्तराध्ययनसूत्र ३.१४-१८ १० शाह, यू० पी०, 'यक्षज वरशिप इन अर्ली जैन लिट्रेचर', ज०ओ०ई०, खं० ३, अं० १,पृ० ५४-७१ ११ भगवतीसूत्र ३.७.१६८; कुमारस्वामी, पू०नि०, पृ० १०-११ ।। १२ तत्त्वार्थ सूत्र, सं० सुखलाल संघवी, बनारस, १९५२, पृ० ११९ १३ वही, पृ० १४६ १४ तत्त्वार्थसूत्र की सूची के प्रथम तीन यक्षों के नाम भगवतीसूत्र में भी हैं।
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