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[ जैन प्रतिमाविज्ञान
ललितमुद्रा में विराजमान सिहवाना अम्बिका की दो मूर्तियां नवमुनि एवं बारभुजी गुफाओं (११ वीं - १२ वीं शती ई०) में उत्कीर्ण हैं । नवमुनि गुफा की मूर्ति में यक्षी के करों में आम्रलुम्बि एवं पुत्र हैं ।' जटामुकुट एवं आम्रफल के गुच्छकों से शोभित अम्बिका के समीप ही दूसरा पुत्र ( निर्वस्त्र ) भी आमूर्तित है । बारभुजी गुफा के उदाहरण में यक्षी के दाहिने हाथ में फल और बायें में आम्रवृक्ष की टहनी हैं। शीर्षभाग में आम्रवृक्ष और बायें पार्श्व में पुत्र उत्कीर्ण हैं ।
दक्षिण भारत - दक्षिण भारत में भी अम्बिका का द्विभुज स्वरूप में निरूपण ही विशेष लोकप्रिय था । मूर्तियों में अम्बिका सामान्यतः पुत्रों एवं सिंहवाहन से युक्त है । दोनों पुत्रों को सामान्यतः वाम पार्श्व में आमूर्तित किया गया है। अम्बिका हाथ में लुम्बा प्रदर्शन नियमित नहीं था । दक्षिण भारत में शीर्षभाग में आम्रफल के गुच्छकों के स्थान पर आम्रवृक्ष के उत्कीर्णन की परम्परा लोकप्रिय थी । अम्बिका दक्षिण भारत की तीन सर्वाधिक लोकप्रिय यक्षियों (अम्बिका, पद्मावती, ज्वालामालिनी) में थी । अम्बिका की प्राचीनतम मूर्ति अयहोल (कर्नाटक) के मेगुटी मन्दिर (६३४-३५ ई०) से मिली है । सामान्य पीठिका पर ललितमुद्रा में विराजमान द्विभुजा यक्षी के दोनों हाथ खण्डित हैं, पर शीर्षभाग में आम्रवृक्ष एवं पैरों के नीचे सिंहवाहन सुरक्षित हैं। वाम पार्श्व में अम्बिका का पुत्र उत्कीर्ण है जिसके एक हाथ में फल है । अम्बिका के पावों में पांच सेविकाएं बनी हैं। दाहिने पार्श्व की एक सेविका की गोद में एक बालक (निर्वस्त्र ) है जो सम्भवतः अम्बिका का दूसरा पुत्र है ।
आनन्दमंगलक गुफा (कांची) में सिंहवाहना अम्बिका की कई स्थानक मूर्तियां हैं। इनमें अम्बिका का बायां हाथ पुत्र के मस्तक पर स्थित है । त्रावनकोर राज्य के किसी स्थल से प्राप्त एक मूर्ति (९ वीं - १० वीं शती ई० ) में हवाना अम्बिका का दाहिना हाथ वरदमुद्रा में है और बायां नीचे लटक रहा है ।" वाम पार्श्व में दोनों पुत्र बने हैं । कलुगुमलाई (तमिलनाडु) की एक मूर्ति (१० वीं - ११ वीं शती ई० ) में सिंहवाहना अम्बिका का दाहिना हाथ एक बालिका के मस्तक पर है और बायां फल ( या आम्रलुम्बि) लिये है । वाम पार्श्व में दो बालक आकृतियां उत्कीर्ण हैं ।" एलोरा की जैन गुफाओं में अम्बिका की कई मूर्तियां (१० वीं - ११ वीं शती ई० ) हैं । इनमें आम्रवृक्ष के नीचे विराजमान अम्बिका के करों में आम्रलुम्बि और पुत्र ( गोद में ) प्रदर्शित हैं । यक्षी का दूसरा पुत्र सामान्यतः सिंहवाहन के समीप आमूर्ति है ( चित्र ५२ ) । अंगदि के जैन बस्ती (कर्नाटक) की मूर्ति में यक्षी के दाहिने हाथ में आम्रलुम्बि है और बायां पुत्र के मस्तक पर स्थित है । दक्षिण पार्श्व में सिंहवाहन और दूसरा पुत्र आमूर्तित हैं। मुर्तजापुर (अकोला, महाराष्ट्र) की एक द्विभुज मूर्ति नागपुर संग्रहालय में है । इसमें सिंहवाहना अम्बिका आम्रलुम्बि एवं फल से युक्त है । प्रत्येक पार्श्व में उसका एक पुत्र खड़ा है । समान विवरणों वाली एक मूर्ति श्रवणबेलगोला के चामुण्डराय बस्ती से मिली है । दक्षिण भारत से अम्बिका की कुछ चतुर्भुज मूर्तियां भी मिली हैं। जिनकांची के भित्ति चित्रों में अम्बिका चतुर्भुजा है ।" पद्मासन में विराजमान यक्षी के ऊपरो हाथों में अंकुश और पाश तथा शेष में अभय - और वरदमुद्राएं
१ मित्रा, देबला, 'शासनदेवीज इन दि खण्डगिरि केव्स', ज०ए०सो०, खं० १, अं० २, पृ० १२९ २ वही, पृ० १३२
३ कजिन्स एच०, दि चालुक्यन आर्किटेक्चर, आर्किअलाजिकल सर्वे आव इण्डिया, खं० ४२, न्यू इम्पीरियल सिरीज, पृ० ३१, फलक ४
४ देसाई, पी०बी०, 'यक्षी इमेजेज इन साऊथ इण्डियन जैनिजम', डा० मिराशी फेलिसिटेशन वाल्यूम, नागपुर, १९६५, पृ० ३४५
५ देसाई, पी०बी०, जैनिजम इन साऊथ इण्डिया ऐण्ड सम जैन एपिग्राफ्स, शोलापुर, १९६३, पृ० ६९
६ पुत्र के स्थान पर पुत्री का चित्रण अपारम्परिक है ।
७ देसाई, पी०बी० पू०नि०, पृ० ६४
८ शाह, यू०पी०, 'आइकानोग्राफी ऑव दि जैन गाडेस अम्बिका', ज०यू०बां०, खं० ९, भाग २, पृ० १५४-५६ ९ वही, पृ० १५८
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