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________________ यक्ष-यक्षी-प्रतिमाविज्ञान ] २२३ के दोनों पुत्र (सिद्ध और बुद्ध) उसके कटि के समीप निरूपित होंगे।' अम्बिका-ताटक में उल्लेख है कि चतुर्भुजा अम्बिका का एक पुत्र उसकी उंगली पकड़े होगा और दूसरा गोद में स्थित होगा। सिंहवाहना अम्बिका फल, आम्रलुम्बि, अंकुश एवं पाश से युक्त है। दिगंबर परम्परा-प्रतिष्ठासारसंग्रह में सिंहवाहना कुष्माण्डिनी (आम्रादेवी) को द्विभुजा और चतुर्भुजा बताया गया है, पर आयुधों का उल्लेख नहीं है। प्रतिष्ठासारोद्धार में द्विभुजा अम्बिका के करों में आम्रलुम्बि (दक्षिण) एवं पुत्र (प्रियंकर) के प्रदर्शन का निर्देश है। दूसरे पुत्र (शुभंकर) के आम्रवृक्ष की छाया में अवस्थित यक्षी के समीप ही निरूपण का उल्लेख है। अपराजितपृच्छा में द्विभुजा अम्बिका के करों में फल एवं वरदमुद्रा का वर्णन है। देवी के समीप ही उसके दोनों पुत्रों के प्रदर्शन का विधान है, जिनमें से एक गोद में बैठा होगा। दिगंबर परम्परा के एक तान्त्रिक ग्रन्थ में सिंहासन पर विराजमान अम्बिका का चतुर्भुज एवं अष्टभुज रूपों में ध्यान किया गया है। चतुर्भुजा अम्बिका के करों में शंख, चक्र, वरदमुद्रा एवं पाश का तथा अष्टभुजा देवी के करों में शंख, चक्र, धनुष, परशु, तोमर, खड्ग, पाश और कोद्रव का उल्लेख है। अम्बिका का भयावह स्वरूप-तान्त्रिक ग्रन्थ, अम्बिका-ताटक, में अम्बिका के भयंकर रूप का स्मरण है और उसे शिवा, शंकरा, स्तम्भिनी, मोहिनी, शोषणी, भीमनादा, चण्डिका, चण्डरूपा, अघोरा आदि नामों से सम्बोधित किया गया है । प्रलयंकारी रूप में उसे सम्पूर्ण सृष्टि की संहार करनेवाली कहा गया है । इस रूप में देवी के करों में धनुष, बाण, दण्ड, खड़ग, चक्र एवं पद्म आदि के प्रदर्शन का निर्देश है। सिंहवाहिनी देवी के हाथ में आम्र का भी उल्लेख है । यू०पी० शाह ने विमलवसही की देवकुलिका ३५ के वितान की विशतिभुजा देवी की सम्भावित पहचान अम्बिका के भयावह रूप से की है । ललितमुद्रा में विराजमान सिंहवाहना अम्बिका की इस मूर्ति में सुरक्षित दस भुजाओं में खड्ग, शक्ति, सर्प, गदा, खेटक, परशु, कमण्डलु, पद्म, अभयमुद्रा एवं वरदमुद्रा प्रदर्शित हैं । १ कुष्माण्डिनी..."पाशाम्रलुम्बिसृणिसत्फलमावहन्ती। पुत्रद्वयं करकटीतटगं च नेमिनाथनमाम्बुजयुगं शिवदा नमन्ती ॥ मन्त्राधिराजकल्प ३.६४ द्रष्टव्य, स्तुति चतुर्विशतिका (शोमनसूरिकृत) २२.४, २४.४ सिंहयाना हेमवर्णा सिद्धबुद्धसमन्विता । कम्राम्रलुम्बिभृत्पाणिरत्राम्बा सङ्घविघ्नहृत् ॥ विविधतीर्थकल्प-उज्यंयन्त-स्तव । २ शाह, यू०पी०, पू०नि०, पृ० १६० ३ देवी कुष्माण्डिनी यस्य सिंहगा हरितप्रभा । चतुर्हस्तजिनेन्द्रस्य महाभक्तिविराजितः ॥ द्विभुजा सिंहमारूढा आम्रादेवी हरिप्रभा ॥ प्रतिष्ठासारसंग्रह ५.६४, ६६ ४ सव्येकयुपगप्रियंकर सुतुक्प्रीत्य कर बिभ्रतीं द्विव्याघ्रस्तबकं शुभंकरकाश्लिष्टान्यहस्तांगुलिम् । सिंहे भत्तु चरे स्थितां हरितमामाभ्रद्रुमच्छायगां वंदारु दशकार्मुकोच्छ्रयलिनं देवीमिहाभ्रा यजे ॥ प्रतिष्ठासारोद्धार ३.१७६; द्रष्टव्य,प्रतिष्ठातिलकम् ७.२२,पृ० ३४७ ५ हरिद्वणी सिंहसंस्था द्विभुजा च फलं वरम् । पुत्रेणोपास्यमाना च सुतोत्संगातथाऽम्बिका ॥ अपराजितपच्छा २२१.३६ ६ शाह, यू०पी०, पू०नि०, पृ० १६१......"देवीं चतुर्भुजां शंखचक्रवरदपाशान्यस्वरूपेण सिंहासनस्थिता। ७ वही, पृ० १६१-शाह ने अष्टभुजा अम्बिका के एक चित्र का उल्लेख किया है, जिसमें सिंहवाहना अम्बिर त्रिशूल, चाप, अभयमुद्रा, शृणि, पद्म, शर एवं आम्रलुम्बि से युक्त है। ८ वही, पृ० १६१-६२ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org |
SR No.002137
Book TitleJain Pratimavigyan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMaruti Nandan Prasad Tiwari
PublisherParshwanath Shodhpith Varanasi
Publication Year1981
Total Pages370
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Culture
File Size13 MB
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