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यक्ष-यक्षी-प्रतिमाविज्ञान ]
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१२ वीं शती ई०) में शान्तिनाथ के साथ कभी-कभी स्वतन्त्र लक्षणों वाले यक्ष का भी निरूपण हुआ है। जिन-संयुक्त
पारम्परिक रबरूप में अंकन नहीं मिलता है । यक्ष का कोई स्वतन्त्र स्वरूप भी स्थिर नहीं हो सका । दिगंबर स्थलों पर यक्ष के करों में पद्म के अतिरिक्त परशु, गदा, दण्ड एवं धन के थैले का प्रदर्शन हआ है।
पुरातत्व संग्रहालय, मथुरा की ल० आठवीं शती ई० की एक मूर्ति (बी ७५) में द्विभुज यक्ष सर्वानुभूति है। मालादेवी मन्दिर की मूर्ति (१० वीं शती ई०) में चतुर्भुज यक्ष के करों में फल, पद्म, परशु एवं धन का थैला प्रदर्शित हैं। देवगढ़ की दसवीं-ग्यारहवीं शती ई० की पांच मूर्तियों में सामान्य लक्षणों वाला द्विभुज यक्ष आमूर्तित है। इनमें यक्ष के हाथों में गदा एवं फल (या धन का थैला) हैं । दो उदाहरणों में यक्ष चतुर्भुज है । एक में यक्ष के करों में गदा, परशु, पद्म एवं फल हैं, और दूसरे में अभयमुद्रा, पद्म, पद्म एवं जलपात्र । खजुराहो के मन्दिर १ की शान्तिनाथ की मूर्ति (१०२८ ई०) में यक्ष चतुर्भुज है और उसके हाथों में दण्ड, पद्म, पद्म एवं फल प्रदर्शित हैं। खजुराहो एवं इलाहाबाद संग्रहालय (क्रमांक ५३३) की तीन मूर्तियों में द्विभुज यक्ष फल (या प्याला) और धन के थैले से युक्त है (चित्र १९)।
(१६) निर्वाणी (या महामानसी) यक्षी शास्त्रीय परम्परा
निर्वाणी (या महामानसी) जिन शान्तिनाथ की यक्षी है। श्वेतांबर परम्परा में चतुर्भुजा निर्वाणी पद्मवाहना और दिगंबर परम्परा में चतुर्भुजा महामानसी मयूर-(या गरुड-) वाहना है ।
श्वेतांबर परम्परा-निर्वाणकलिका में पद्मवाहना निर्वाणी के दाहिने हाथों में पुस्तक एवं उत्पल और बायें में कमण्डल एवं पद्म वर्णित हैं। अन्य ग्रन्थों में भी इन्हीं लक्षणों के उल्लेख हैं। पर मन्त्राधिराजकल्प में पद्म के स्थान पर वरदमुद्रा" और आचारदिनकर में पुस्तक के स्थान पर कल्हार (?) के उल्लेख हैं।
दिगंबर परम्परा-प्रतिष्ठासारसंग्रह में मयूरवाहना महामानसी के हाथों में फल, सर्प, चक्र एवं वरदमुद्रा उल्लिखित हैं। समान लक्षणों का उल्लेख करने वाले अन्य ग्रन्थों में सर्प के स्थान पर इढि (या ईडी-खडगका वर्णन है।' अपराजितपच्छा में महामानसी का वाहन गरुड है और उसके करों में बाण, धनुष, वज्र एवं चक्र वर्णित हैं।
निर्वाणी के साथ पद्मवाहन एवं करों में पद्य, पुस्तक और कमण्डलु का प्रदर्शन निश्चित ही सरस्वती का प्रभाव है। दिगंबर परम्परा में यक्षी के साथ मयूरवाहन का निरूपण भी सरस्वती का ही प्रभाव है।. दिगंबर परम्परा में
१ कुछ उदाहरणों में यक्ष के रूप में सर्वानुभूति भी निरूपित है। २ म्यारहवीं शती ई० की ये मूर्तियां मन्दिर ८ और मन्दिर १२ (पश्चिमी चहारदीवारी) पर हैं। ३ निर्वाणी देवी गौरवर्णी पद्मासनां चतुर्भुजां पुस्तकोत्पलयुक्तदक्षिणकरां कमण्डलुकमलयुतवामहस्तां चेति ।
निर्वाणकलिका १८.१६ ४ त्रिश०पु०च० ५.५.३७५-७६; पद्मानन्दमहाकाव्यः परिशिष्ट-शान्तिनाथ ४६०-६१; शान्तिनाथमहाकाव्य १५.१३२ ५ मन्त्राधिराजकल्प ३.६१
६ आचारदिनकर ३४, पृ० १७७ ७ सुमहामानसी देवी हेमवर्णा चतुर्भुजा। फलाहिचक्रहस्तासौ वरदा शिखिवाहना ॥ प्रतिष्ठासारसंग्रह ५.५३ चक्रफलेढिरांकितकरां महामानसीं सूवर्णाभाम् । प्रतिष्ठासारोद्धार ३.१७०
द्रष्टव्य, प्रतिष्ठातिलकम्, ७.१६, पृ० ३४५ ९ चतुर्भुजा सुवर्णाभा शरः शार्गच वज्रकम् ।
चक्रं महामानसीस्यात् पक्षिराजोपरिस्थिता ।। अपराजितपच्छा २२१.३० १. महामानसी का शाब्दिक अर्थ विद्या या ज्ञान की प्रमुख देवी है। सम्भवतः इसी कारण महामानसी के साथ
सरस्वती का मयूर वाहन प्रदर्शित किया गया । द्रष्टव्य, भट्टाचार्य, बी०सी०, पू०नि०, पृ० १३७
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