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यक्ष-यक्षी-प्रतिमाविज्ञान ]
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दिगंबर परम्परा-प्रतिष्ठासारसंग्रह में षड्भुजा मानसी का वाहन व्याघ्र है। ग्रन्थ में आयुधों का अनुल्लेख है। प्रतिष्ठासारोद्धार में यक्षी के दो हाथों में पद्म और शेष में धनुष, वरदमुद्रा, अंकुश और बाण का उल्लेख है। अपराजितपृच्छा में मानसी के करों में त्रिशूल, पाश, चक्र, डमरू, फल एवं वरदमुद्रा के प्रदर्शन का निर्देश है ।
यद्यपि मानसी का नाम १५वीं महाविद्या मानसी से ग्रहण किया गया, पर यक्षी की लाक्षणिक विशेषताएं सर्वथा स्वतन्त्र हैं। स्मरणीय है कि किन्नर यक्ष एवं कन्दर्पा यक्षी दोनों ही के वाहन मत्स्य हैं। कन्दर्पा को हिन्दु देव कन्दपं या काम से सम्बन्धित नहीं किया जा सकता है।
. दक्षिण भारतीय परम्परा-दिगंबर ग्रन्थ में सिंहवाहना मानसी चतुर्भुजा है और उसके दाहिने हाथों में अंकुश और शूल (या बाण) तथा बायें में पुष्प (या चक्र) और धनुष का उल्लेख है। अज्ञातनाम श्वेतांबर ग्रन्थ में मृगवाहना (कृष्णसार) यक्षी चतुर्भुजा है और उसकी भुजाओं में शर, चाप, वरदमुद्रा एवं पद्म प्रदर्शित हैं । यक्ष-यक्षी-लक्षण में व्याघ्रवाहना यक्षी षड्भुजा है और उसके करों में उत्तर भारतीय दिगंबर परम्परा के अनुरूप पद्म, धनुष, वरदमुद्रा, अंकुश, बाण एवं उत्पल का उल्लेख है।" मूर्ति-परम्परा
___ यक्षी की दो स्वतन्त्र मूर्तियां मिली हैं। दिगंबर स्थलों से मिलने वाली ये मूर्तियां क्रमशः देवगढ़ (मन्दिर १२, ८६२ ई०) एवं बारभुजी गुफा के सामूहिक अंकनों में उत्कीर्ण हैं । देवगढ़ में धर्मनाथ के साथ 'सुरक्षिता' नाम की सामान्य स्वरूप वाली द्विभुजा यक्षी आमूर्तित है ।६ यक्षी के दाहिने हाथ में पद्म है और बायां जानु पर स्थित है । बारभुजी गुफा में धर्मनाथ की षड्भुजा यक्षी का वाहन उष्ट्र है। यक्षी के दाहिने हाथों में वरदमुद्रा, पिण्ड (या फल), तीन कांटों वाली वस्तु और बायें में घण्टा, पताका एवं शंख प्रदर्शित हैं।" यक्षी का निरूपण परम्परासम्मत नहीं है। एक मूर्ति ग्यारसपुर के मालादेवी मन्दिर के मण्डोवर के उत्तरी पाश्वं पर उत्कीर्ण है। चतुर्भजा देवी का वाहन झष है और उसके करों में वरदमुद्रा, अभयमुद्रा, पद्म और फल प्रदर्शित हैं। झषवाहन और पद्म के आधार पर देवी की सम्भावित पहचान धर्मनाथ की यक्षी से की जा सकती है।
(१६) गरुड यक्ष शास्त्रीय परम्परा
गरुड- जिन शान्तिनाथ का यक्ष है। श्वेतांबर परम्परा में इसे वराहमुख बताया गया है।
१देवता मानसी नाम्ना षडभूजाविड्रमप्रभा ।
व्याघ्रवाहनमारूढा नित्यं धर्मानुरागिणी । प्रतिष्ठासारसंग्रह ५.५१ २ सांबुजधनुदानांकुशशरोत्पला व्याघ्रगा प्रवालनिमा। प्रतिष्ठासारोद्धार ३.१६९
द्रष्टव्य, प्रतिष्ठातिलकम् ७.१५, पृ० ३४५ ३ षड्भुजा रक्तवर्णा च त्रिशूलं पाशचक्रके ।
डमा फलवरे मानसी व्याघ्रवाहना ॥ अपराजितपुच्छा २२१.२९ ४ भट्टाचार्य, बी० सी०, पू०नि०, पृ० १३५ ५ रामचन्द्रन, टी० एन०, पू०नि०, पृ० २०५ ६ जि०३०दे०, पृ० १०३, १०६ . ७ मित्रा, देबला, पू०नि०, पृ० १३२ ८ मन्त्राधिराजकल्प में यक्ष का बराह नाम से उल्लेख है।
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