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________________ १९० [ जैन प्रतिमाविज्ञान (९) सुतारा (या महाकाली) यक्षी शास्त्रीय परम्परा सुतारा (या महाकाली) जिन सुविधिनाथ (या पुष्पदन्त) की यक्षी है । श्वेतांबर परम्परा में यक्षी को सुतारा (या चाण्डालिका) और दिगंबर परम्परा में महाकाली कहा गया है। श्वेतांबर परम्परा-निर्वाणकलिका में वृषभवाहना सुतारा चतुर्भुजा है। यक्षी के दाहिने हाथों में वरदमुद्रा एवं अक्षमाला और बायें में कलश एवं अंकुश वर्णित है। अन्य ग्रन्थों में भी इन्हीं लक्षणों के उल्लेख हैं। दिगंबर परम्परा-प्रतिष्ठासारसंग्रह में कूर्मवाहना महाकाली चतुर्भुजा है। यक्षी तीन भुजाओं में वज्र, मुद्गर और फल लिये है। चौथी भुजा की सामग्री का अनुल्लेख है। अन्य ग्रन्थों में चौथी भुजा में वरदमुद्रा बतायी गयी है। अपराजितपच्छा में मृद्गर और फल के स्थान पर गदा और अभयमुद्रा का उल्लेख है।५ यक्षी का स्वरूप सम्भवतः ८ वी महाविद्या महाकाली से प्रभावित है । यक्षी का कूर्मवाहन अजित यक्ष के कूर्मवाहन से सम्बन्धित हो सकता है। दक्षिण भारतीय परम्परा-दिगंबर ग्रन्थ में चतुर्भुजा यक्षी के ऊपरी हाथों में दण्ड एवं फल (या वज्र) और नीचे के हाथों में अभय-एवं कटक-मुद्रा का उल्लेख है। अज्ञातनाम श्वेतांबर ग्रन्थ में सिंहवाहना यक्षी के करों में खड्ग, फल, वज्र एवं पद्म वर्णित हैं। यक्ष-यक्षी-लक्षण में कूर्मवाहना यक्षी के करों में सर्वज्ञ (? आयुध या ज्ञानमुद्रा), मुद्गर, फल एवं वरदमुद्रा के प्रदर्शन का निर्देश है।" मूर्ति-परम्परा महाकाली की केवल दो स्वतन्त्र मूर्तियां मिली हैं। ये मूर्तियां देवगढ़ (मन्दिर १२, ८६२ ई०) और बारभुजी गुफा के सामूहिक चित्रणों में उत्कीर्ण हैं। इनमें देवी के निरूपण में पारम्परिक विशेषताएं नहीं प्रदर्शित हैं । देवगढ़ में पुष्पदन्त के साथ 'बहुरूपी' नाम की सामान्य लक्षणों वाली द्विभुजी यक्षी आमूर्तित है। यक्षी के दाहिने हाथ में चामर-पद्म है और बायां जानु पर स्थित है।' बारभुजी गुफा की मूर्ति में दशभुजा यक्षी वृषभवाहना है । यक्षी के दक्षिण करों में वरदमुद्रा, चक्र (?), पक्षी, फलों से भरा पात्र (?) एवं चक्र (?), और वाम में अर्धचन्द्र, तर्जनीमुद्रा, सर्प, पुष्प (?) एवं मयूरपंख (या वृक्ष की डाल) प्रदर्शित हैं । (१०) ब्रह्म यक्ष शास्त्रीय परम्परा ब्रह्म जिन शीतलनाथ का यक्ष है। दोनों परम्पराओं में चतुर्मुख एवं अष्टभुज ब्रह्म यक्ष का वाहन पद्म बताया गया है। १ सुतारादेवीं गौरवर्णां वृषवाहनां चतुर्भुजां वरदाक्षसूत्रयुक्तदक्षिणभुजां कलशांकुशान्वितवामपाणि चेति । निर्वाणकलिका १८.९ २ त्रिश०पु०च० ३.७.१४०-४१; पद्मानन्दमहाकाव्यः परिशिष्ट-सुविधिनाथ १८-१९; मन्त्राधिराजकल्प ३.५७; आचारदिनकर ३४, पृ० १७६ ३ देवी तथा महाकाली विनीता कूर्मवाहना । सवज्रमुद्गरा (कृष्णा) फलहस्ता चतुर्भुजा ॥ प्रतिष्ठासारसंग्रह ५.३४ ४ प्रतिष्ठासारोद्धार ३.१६३; प्रतिष्ठातिलकम् ७.९, पृ० ३४३ ५ चतुभुजा कृष्णवर्णा वज्र गदावराभयाः । अपराजितपृच्छा २२१.२३ ६ स्मरणीय है कि सुविधिनाथ (या पुष्पदंत) का लांछन मकर है । ७ रामचन्द्रन, टी०एन०, पू०नि०, पृ० २०२ ८ जि०इ०३०, पृ० १०७ ९ मित्रा, देबला, पू०नि०, पृ० १३१ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002137
Book TitleJain Pratimavigyan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMaruti Nandan Prasad Tiwari
PublisherParshwanath Shodhpith Varanasi
Publication Year1981
Total Pages370
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Culture
File Size13 MB
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