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ग्रन्थ- परिचय
प्रस्तुत ग्रन्थ में प्रारम्भ से लगभग बारहवीं शती ई० तक के जैन प्रतिमाविज्ञान के विकास का विस्तृत निरूपण है। इसमें देवगढ़, खजुराहो, कुम्भारिया, ओसिया, आबू, तारंगा, ग्यारसपुर, जालोर, घाणेराव जैसे स्थलों एवं कई पुरातात्विक संग्रहालयों के जैन मूर्ति अवशेषों का एकैकशः विशद विवेचन किया गया है। दिगंबर स्थलों पर जैन महाविद्याओं के संभावित अंकन (खजुराहो ) के प्रयास, द्वितीर्थी एवं त्रितोर्थी जिन मूर्तियों तथा उनमें बाहुबली एवं सरस्वती के अंकन, बाहुबली और भरत चक्रवर्ती को स्वतन्त्र मूर्तियां; और श्वेतांबर स्थलों पर जिनों के जीवनदृश्यों एवं उनके माता-पिता के निरूपण तथा कई अन्य महत्वपूर्ण प्राप्ति उपर्युक्त अध्ययन द्वारा ही संभव हो सकीं हैं । जैन कलाकेन्द्रों पर विशेष लोकप्रिय, किन्तु परंपरा में अवर्णित जैन देवी-देवताओं के उल्लेख पहली बार इसी ग्रन्थ में हुए हैं। एक स्थल पर सम्पूर्ण जैन देवकुल के विकास के निरूपण तथा यक्ष-यक्षी प्रतिमाविज्ञान के अध्ययन में जिनसंयुक्त मूर्तियों के उल्लेख भी पहली बार हुए हैं । समूचा अध्ययन ऐतिहासिक दृष्टिकोण के अन्तर्गत काल और क्षेत्र की मर्यादा में किया गया है ।
प्रस्तुत ग्रन्थ जैन धर्म, कला एवं प्रतिमाविज्ञान पर शोध करने वालों के साथ ही हिन्दी जगत् के सामान्य जिज्ञासु पाठकों के लिए भी उपयोगी होगा ।
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