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________________ यक्ष-यक्षी-प्रतिमाविज्ञान 1 १७१ चक्रेश्वरी के ऊपरी दोनों हाथों में एक-एक चक्र है, और छह उदाहरणों में क्रमशः गदा एवं चक्र हैं। नीचे के हाथों में अभय-(या वरद-) मुद्रा एवं शंख (या फल या जलपात्र) प्रदर्शित हैं।' स्थानीय संग्रहालय की ग्यारहवीं शती ई० की एक ऋषभ मूर्ति की पीठिका पर मूलनायक के आकार की द्वादशभुजा चक्रेश्वरी आमूर्तित है । यक्षी की सभी भुजाएं भग्न हैं । देवगढ़ की दसवीं से बारहवीं शती ई० के मध्य की कम से कम २० ऋषभ मूर्तियों में यक्षी चक्रेश्वरी है। गरुडवाहना यक्षी अधिकांशतः किरीटमुकुट से शोभित है। दसवीं शती ई० की केवल दो ही ऋषभ मूर्तियों में चक्रेश्वरी द्विभुजा है। इनमें यक्षी चक्र एवं शंख से युक्त है। अन्य मूर्तियों में चक्रेश्वरी चतुर्भुजा है। केवल मन्दिर ४ की मूर्ति (११वीं शती ई०) में चक्रेश्वरी षड्भुजा है और उसके सुरक्षित करों में वरदमुद्रा, गदा, चक्र, चक्र एवं शंख प्रदर्शित हैं । चतुर्भुजा यक्षी की भुजाओं में अभय-(या वरद-) मुद्रा, गदा या (या पद्म), चक्र एवं शंख (या कलश) हैं। __राज्य संग्रहालय, लखनऊ की २२ ऋषभ मूर्तियों में से केवल १० उदाहरणों (१० वी-१२ वीं शती ई०) में गरुडवाहना चक्रेश्वरी आमूर्तित है। चक्रेश्वरी केवल एक मूर्ति (जे ८५६, ११ वीं शती ई०) में द्विभुजा है और उसकी भुजाओं में चक्र एवं शंख प्रदर्शित हैं । अधिकांश मूर्तियों में यक्षी चतुर्भुजा है और उसके करों में अभयमुद्रा, गदा (या चक्र), चक्र एवं शंख हैं। एक मूर्ति (जी ३२२) में यक्षी की चारों भुजाओं में चक्र हैं। उरई की एक मूर्ति (१६.०.१७८, ११ वीं शती ई०) में चक्रेश्वरी अष्टभुजा है (चित्र ७)। जटामुकुट से शोभित चक्रेश्वरी की सुरक्षित भुजाओं में गदा, अभयमुद्रा, वज्र, चक्र, सर्प (?) एवं धनुष (?) प्रदर्शित हैं। पुरातत्व संग्रहालय, मथुरा की ल. दसवीं शती ई० की एक ऋषभ मूर्ति (बी २१) में गरुडवाहना चक्रेश्वरी चतुर्भुजा है और उसकी भुजाओं में अभयमुद्रा, चक्र, चक्र एवं शंख हैं। उत्तरप्रदेश एवं मध्यप्रदेश की दिगंबर परम्परा की चक्रेश्वरी मूर्तियों के अध्ययन से स्पष्ट होता है कि इस क्षेत्र में चक्रेश्वरी की दो से बीस भुजाओं वाली मूर्तियां उत्कीर्ण हुईं। ये मूर्तियां नवीं से बारहवीं शती ई० के मध्य की हैं । स्वतन्त्र एवं जिन-संश्लिष्ट मूर्तियों में चक्रेश्वरी का चतुर्भुज स्वरूप ही सर्वाधिक लोकप्रिय था। द्विभुज, षड्भुज, अष्टभुज, दशभुज एवं विंशतिभुज रूपों में भी पर्याप्त मूर्तियां बनीं जिनका दिगंबर ग्रन्थों में अनुल्लेख है। चक्रेश्वरी की सर्वाधिक स्वतन्त्र एवं जिन-संश्लिष्ट मूतियां इसी क्षेत्र में उत्कीर्ण हुई। चक्रेश्वरी के साथ गरुडवाहन एवं चक्र, शंख, गदा और अमय(या वरद-) मुद्रा का प्रदर्शन दसवीं से बारहवीं शती ई० के मध्य को मूर्तियों में नियमित था। दिगंबर ग्रन्थों के निर्देशों का पालन केवल गरुडवाहन एवं चक्र और वरदमुद्रा के प्रदर्शन में ही किया गया है । बिहार-उड़ीसा-बंगाल-इस क्षेत्र में केवल उड़ीसा से चक्रेश्वरी की मूर्तियां (११वीं-१२वीं शती ई०) मिली हैं जो नवमुनि एवं बारभुजी गुफाओं में उत्कीर्ण हैं। इनमें गरुडवाहना यक्षी दस और बारह भुजाओं वाली हैं। नवमुनि गुफा की मूर्ति में दशभुजा यक्षी योगासन-मुद्रा में बैठी और जटामुकुट से शोभित है। यक्षी के सात हाथों में चक्र तथा दो में खेटक और अक्षमाला हैं। एक भुजा योगमुद्रा में गोद में स्थित है। बारभुजी गुफा की द्वादशभुज मूर्ति में यक्षी के छह दाहिने हाथों में वरदमुद्रा, वज्र, चक्र, चक्र, अक्षमाला एवं खड्ग और तीन अवशिष्ट वाम भुजाओं में खेटक, चक्र तथा १ दो उदाहरणों में चक्र (के ७९) एवं छल्ला (पुरातात्विक संग्रहालय, खजुराहो १६६७) मी प्रदर्शित हैं। २ खजुराहो के विपरीत देवगढ़ की ऋषभ मूर्तियों में चार उदाहरणों में अम्बिका एवं पन्द्रह उदाहरणों में सामान्य लक्षणों वाली यक्षी भी आमूर्तित हैं। ३ मन्दिर २ और १९ । मन्दिर १६ के मानस्तम्भ (१२ वीं शती ई०) की मूर्ति में भी यक्षी द्विभुजा है और उसकी दोनों भुजाओं में चक्र स्थित हैं। ४ जे ८४७, जे ७८९, ६६.५९, १२.०.७५ ५ द्विभुजा चक्रेश्वरी का निरूपण मुख्यतः देवगढ़, खजुराहो एवं राज्य संग्रहालय, लखनऊ की जिन-संयुक्त मूर्तियों में ही हुआ है । छह से बीस भुजाओं वाली मूर्तियां भी मुख्यतः इन्हीं स्थलों से मिली हैं । ६ मित्रा, देबला, पू०नि०, पृ० १२८ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002137
Book TitleJain Pratimavigyan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMaruti Nandan Prasad Tiwari
PublisherParshwanath Shodhpith Varanasi
Publication Year1981
Total Pages370
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Culture
File Size13 MB
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