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________________ यक्ष-यक्षी-प्रतिमाविज्ञान 1 १६९ चक्र एवं शंख (या फल) से युक्त है ।' शान्तिनाथ मन्दिर की उत्तरी भित्ति की मूर्ति में यक्षी वरदमुद्रा, चक्र, चक्र एवं शंख के साथ निरूपित है। चार स्वतन्त्र मूर्तियों के अतिरिक्त दसवीं से बारहवीं शती ई. के मध्य के नौ उत्तरंगों पर भी चक्रेश्वरी की मूर्तियां उत्कीर्ण हैं । उत्तरंगों की मूर्तियों में किरीटमुकुट से सज्जित गरुडवाहना यक्षो चार से दस भुजाओं वाली हैं । तीन उत्तरंग क्रमशः पार्श्वनाथ, घण्टई एवं आदिनाथ मन्दिरों में हैं। खजुराहो में दसवीं शती ई० में ही चक्रेश्वरी की आठ और दस भुजाओं वाली मूर्तियां भो उत्कीर्ण हुई । घण्टई मन्दिर (१० वीं शती ई०) के उत्तरंग की मूर्ति में अष्टभुजा यक्षी की भुजाओं में फल (?), घण्टा, चक्र, चक्र, चक्र, चक्र, धनुष (?) एवं कलश प्रदर्शित हैं। पार्श्वनाथ मन्दिर (१० वीं शती ई०) के उत्तरंग की मूर्ति में दशभुजा चक्रेश्वरी के करों में वरदमुद्रा, खड्ग, गदा, चक्र, पद्म (?), चक्र, कामुक, फलक, गदा और शंख निरूपित हैं। मन्दिर ११ के उत्तरंग की षड्भुज मूर्ति (११ वीं शती ई०) में चक्रेश्वरी के हाथों में वरदमुद्रा, चक्र, चक्र, चक्र, चक्र एवं शंख हैं। दसवीं-ग्यारहवीं शती ई० के छह अन्य उदाहरणों में यक्षी चतुर्भजा है (चित्र ५७)। इनमें यक्षी के ऊपरी करों में गदा और चक्र तथा नीचे के करों में अभय-(या वरद-) मद्रा और शंख प्रदर्शित हैं। ___ इन मूर्तियों के अध्ययन से स्पष्ट है कि खजुराहो में चक्रेश्वरी की चार से दस भुजाओं वाली मूर्तियां उत्कीर्ण हुईं, किन्तु यक्षी का चतुर्भुज स्वरूप ही सर्वाधिक लोकप्रिय था। गरुडवाहना यक्षी के साथ चक्र, शंख और गदा का अंकन नियमित था । बहुभुजी मूर्तियों में चक्रेश्वरी के अतिरिक्त करों में सामान्यतः खड्ग, खेटक, धनुष और पद्म प्रदर्शित हैं। उत्तर भारत में चक्रेश्वरी की सर्वाधिक मूर्तियां देवगढ़ में उत्कीर्ण हुईं, और चक्रेश्वरी की प्राचीनतम ज्ञात मूर्ति भी यहीं से मिली है। नवीं-दसवीं शती ई० में चक्रेश्वरी की केवल चतुर्भुज मूर्तियां ही बनीं । ग्यारहवीं शती ई० में चक्रेश्वरी का चतुर्भुज के साथ ही षड्भुज, अष्टभुज, दशभुज एवं विंशतिभुज स्वरूपों में भी निरूपण हुआ। इस प्रकार चक्रेश्वरी की मूर्तियों के मूर्तिविज्ञानपरक विकास के अध्ययन की दृष्टि से भी देवगढ़ की मूर्तियां बड़े महत्व की हैं । खजुराहो के समान ही यहां भी चक्रेश्वरी की चतुर्भुज मूर्तियां ही सर्वाधिक संख्या में बनीं । किरीटमुकुट से अलंकृत गरुडवाहना यक्षी के करों में चक्र, शंख एवं गदा का नियमित अंकन हुआ है। बहुभुजी मूर्तियों में अतिरिक्त करों में सामान्यतः खड्ग, खेटक, परशु एवं वज्र प्रदर्शित हैं। मन्दिर १२, ५ एवं ११ के उत्तरंगों पर चतुर्भुज चक्रेश्वरी की तीन मूर्तियां (१० वी-११ वीं शती ई०) उत्कीर्ण हैं। इनमें यक्षी अभय-(या वरद-) मुद्रा, गदा, चक्र एवं शंख से युक्त है। मन्दिर १२ के अधमण्डप के स्तम्भ की एक चतुर्भुज मूर्ति (१०वीं शती ई०) में यक्षो स्थानक-मुद्रा में आमूर्तित है और उसकी भुजाओं में वरदमुद्रा, गदा, चक्र एवं शंख हैं । मन्दिर १, ४, १२ एवं २६ के आगे के स्तम्भों (११वीं-१२वीं शती ई०) पर भी चतुर्भुजा यक्षी की सात मूर्तियां हैं। इनमें भी यक्षी के करों में ऊपर वर्णित आयुध ही प्रदर्शित हैं। मन्दिर ४ की मूर्ति (११५० ई.) में यक्षी की अक्षमाला धारण किये एक भुजा से व्याख्यान-मुद्रा प्रदशित है। मन्दिर १ के बारहवीं शतो ई० के स्तम्भों को दो मूर्तियों में यक्षी के तीन हाथों में चक्र और एक में शंख (या वरदमुद्रा) हैं। मन्दिर ९ के उत्तरंग की मूर्ति (११वीं शती ई०) में यक्षी के करों में वरदमुद्रा, गदा, चक्र एवं छल्ला हैं । देवगढ़ में षड्भुज चक्रेश्वरी की केवल एक ही मूर्ति (११वीं शती ई०) है। यह मूर्ति मन्दिर १२ की दक्षिणी चहारदीवारी पर उत्कीर्ण है। गरुडवाहना यक्षी की भुजाओं में वरदमुद्रा, खड्ग, चक्र, चक्र, गदा एवं शंख प्रदर्शित हैं। अष्टभुजा चक्रेश्वरी की तीन मूर्तियां मिली हैं। एक मूर्ति (११वीं शती ई०) मन्दिर १ के पश्चिमी मानस्तम्भ पर उत्कीर्ण १ एक मूति आदिनाथ मन्दिर के उत्तरी अधिष्ठान पर है। २ मन्दिर २२ की मूर्ति में निचली दाहिनी भुजा में मुद्रा के स्थान पर पन, आदिनाथ मन्दिर के उत्तरंग की मूर्ति में चक्र के स्थान पर पद्म एवं जैन धर्मशाला के समीप की मूर्ति में ऊपर की दोनों भुजाओं में दो चक्र प्रदर्शित हैं। २२ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002137
Book TitleJain Pratimavigyan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMaruti Nandan Prasad Tiwari
PublisherParshwanath Shodhpith Varanasi
Publication Year1981
Total Pages370
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Culture
File Size13 MB
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