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________________ यक्ष-यक्षी-प्रतिमाविज्ञान ] १५९ पर पारम्परिक और स्वतन्त्र लक्षणों वाले यक्ष-यक्षी युगलों का निरूपण प्रारम्भ हो गया, जिसके उदाहरण मुख्यतः उत्तर प्रदेश एवं मध्य प्रदेश में देवगढ़, राज्य संग्रहालय, लखनऊ, ग्यारसपुर, खजुराहो एवं कुछ अन्य स्थलों पर हैं। इन स्थलों की दसवीं शती ई० की मूर्तियों में ऋषभ एवं नेमि के साथ क्रमश: गोमुख-चक्रेश्वरी एवं सर्वानुभूति-अम्बिका उत्कीणित हैं (चित्र ७, २७) । पर शान्ति एवं महावीर के स्वतन्त्र लक्षणों वाले यक्ष-यक्षी पारम्परिक नहीं हैं। ओसिया के महावीर और ग्यारसपुर के मालादेवी मन्दिरों पर धरणेन्द्र एवं पद्मावती की स्वतन्त्र मूर्तियां उत्कीर्ण हैं। छठी शती ई० से आठवीं-नवीं शती ई. तक की जिन मूर्तियों में यक्ष-यक्षी के चित्रण बहुत नियमित नहीं थे। पर नवीं शती ई० के बाद बिहार, उड़ीसा एवं बंगाल के अतिरिक्त अन्य सभी क्षेत्रों की जिन मूर्तियों में यक्ष-यक्षी युगलों के नियमित अंकन हुए हैं। यह भी ज्ञातव्य है कि स्वतन्त्र अंकनों में यक्ष की तुलना में यक्षियों के चित्रण विशेष लोकप्रिय थे। २४ यक्षियों के सामूहिक अंकन के हमें तीन उदाहरण मिले हैं।' पर २४ यक्षों के सामूहिक निरूपण का सम्भवतः कोई प्रयास नहीं किया गया। यक्ष एवं यक्षियों के उत्कीर्णन की दृष्टि से उत्तर भारत के विभिन्न क्षेत्रों में अलग-अलग स्थिति रही है, जिसका अतिसंक्षेप में उल्लेख यहां अपेक्षित है। गुजरात-राजस्थान-इस क्षेत्र में श्वेतांबर स्थलों पर महाविद्याओं की विशेष लोकप्रियता के कारण यक्ष एवं यक्षियों की मूर्तियां तुलनात्मक दृष्टि से बहुत कम हैं। इस क्षेत्र में अम्बिका की सर्वाधिक मूर्तियां हैं। वस्तुतः अम्बिका की मूर्तियां (५वीं-६ठीं शती ई०) सबसे पहले इसी क्षेत्र में उत्कीर्ण हुई । अम्बिका के बाद चक्रेश्वरी, पद्मावती (कुम्भारिया. विमलवसही) एवं सिद्धायिका की मूर्तियां हैं। यक्षों में केवल वरुण (?), सर्वानुभूति, गोमुख एवं पार्श्व की ही मूर्तियां मिली हैं । स्मरणीय है कि सर्वानुभूति एवं अम्बिका इस क्षेत्र के सर्वाधिक लोकप्रिय यक्ष-यक्षी युगल थे, जिन्हें सभी जिनों के साथ निरूपित किया गया। केवल कुछ ही उदाहरणों में ऋषभ (गोमुख-चक्रेश्वरी), पार्श्व (धरणेन्द्र-पद्मावती) एवं महावीर (मातंग-सिद्धायिका) के साथ पारम्परिक और स्वतन्त्र लक्षणों वाले यक्ष-यक्षी आमूर्तित हैं। दिनंबर जिन मूर्तियों में स्वतन्त्र लक्षणों वाले पारम्परिक यक्ष और यक्षियों के चित्रण अधिक लोकप्रिय थे। उत्तरप्रदेश-मध्यप्रदेश–यक्ष एवं यक्षियों के मूर्तिविज्ञानपरक विकास के अध्ययन की दृष्टि से यह क्षेत्र सर्वाधिक महत्वपूर्ण है। इस क्षेत्र में ल० सातवीं-आठवीं शती ई० में जिन मूर्तियों में यक्ष-यक्षी के चित्रण प्रारम्भ हुए। इस क्षेत्र की दसवीं से बारहवीं शती ई. के मध्य की जिन मूर्तियों में अधिकांशतः पारम्परिक या स्वतन्त्र लक्षणों वाले यक्ष-यक्षी ही निरूपित हैं। ऋषभ, नेमि एवं पार्श्व के साथ अधिकांशतः पारम्परिक यक्ष-यक्षी उत्कीर्ण हैं। सुपाव, चन्द्रप्रभ, शान्ति एवं महावीर के साथ भी कभी-कभी स्वतन्त्र लक्षणों वाले, किन्तु अपारम्परिक यक्ष-यक्षी आमूर्तित हैं। अन्य जिनों के साथ अधिकांशतः सामान्य लक्षणों वाले द्विभुज यक्ष-यक्षी निरूपित हैं। सामान्य लक्षणों वाले यक्ष-यक्षी के हाथों में अभय-(या वरद-)पुद्रा और कलश (या फल या पुष्प) प्रदर्शित हैं। इस क्षेत्र में चक्रेश्वरी एवं अम्बिका की सर्वाधिक स्वतन्त्र मूर्तियां १ये उदाहरण क्रमशः देवगढ़ (मन्दिर १२), पतियानदाई (अम्बिका मूर्ति) और बारभुजी गुफा से मिले हैं। २ राजपूताना संग्रहालय, अजमेर (२७०), घाणेराव (महावीर मन्दिर) एवं तारंगा (अजितनाथ मन्दिर) ३ गजारूढ़ सर्वानुभूति कभी द्विभुज और कभी चतुर्भुज है। द्विभुज होने पर उसकी दोनों भुजाओं में या तो धन का थैला प्रदर्शित है, या फिर एक में फल (या वरद या-अभय-मुद्रा) और दूसरे में धन का थैला हैं। चतुर्भुज सर्वानुभूति के हाथों में सामान्यतः वरद-(या अभय-) मुद्रा, अंकुश, पाश और धन का थैला (या फल) प्रदर्शित हैं । सिंहवाहिनी अम्बिका सामान्यतः द्विभुजा है और उसके हाथों में आम्रलुम्बि (या फल) एवं बालक स्थित हैं । चतुर्भुज अम्बिका की तीन भुजाओं में आम्रलुम्बि एवं चौथे में बालक प्रदर्शित हैं। ४ कुम्भारिया (शान्तिनाथ एवं महावीर मन्दिर के वितान), चन्द्रावती एवं विमलवसही (गर्भगृह एवं देवकुलिका २५) __ को मूर्तियां ५ ओसिया के महावीर मन्दिर के वलानक एवं विमलवसही (देवकुलिका ४) की मूर्तियां ६ कुम्भारिया के शान्तिनाथ मन्दिर के वितान की मूर्ति Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002137
Book TitleJain Pratimavigyan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMaruti Nandan Prasad Tiwari
PublisherParshwanath Shodhpith Varanasi
Publication Year1981
Total Pages370
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Culture
File Size13 MB
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