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________________ [ जैन प्रतिमाविज्ञान यक्ष-यक्षी युगलों से युक्त हैं। मूलनायकों के परिकर में जिनों, स्थापना-युक्त जैन आचार्यों एवं गोद में बालक लिये स्त्रीपुरुष युगलों की कई आकृतियां उत्कीर्ण हैं। ल० ग्यारहवीं-बारहवीं शती ई० में स्तम्भों के शीर्ष भाग में भी जिन चौमुखी का उत्कीर्णन प्रारम्भ हुआ। ऐसे दो उदाहरण पुरातात्विक संग्रहालय, ग्वालियर एवं राज्य संग्रहालय, लखनऊ (०.७३) में हैं। गुजरात-राजस्थान-गुजरात और राजस्थान में श्वेतांबर स्थलों पर जिन चौमुखी का उत्कीर्णन विशेष लोकप्रिय नहीं था । इस क्षेत्र से दोनों वर्गों की चौमुखी मूर्तियां मिली हैं। दूसरे वर्ग की मूर्तियों में मथुरा की कुषाणकालीन चौमुखी मूर्तियों के समान केवल ऋषभ और पाश्वं की ही पहचान सम्भव है। जघीना (भरतपुर) से प्राप्त नवों शती ई० की एक दिगंबर मूर्ति भरतपुर राज्य संग्रहालय (३) में है। इसमें जटाओं से शोभित ऋषम की चार कायोत्सर्ग मतियां उत्कीर्ण हैं। ल० ग्यारहवीं शती ई० की दो मूर्तियां बीकानेर संग्रहालय (१६७२) एवं राजपूताना संग्रहालय, अजमेर (४९३) में हैं। इनमें ध्यानमुद्रा में विराजमान जिनों के साथ लांछन नहीं उत्कीर्ण हैं। अकोटा से दूसरे वर्ग की दसवीं से बारहवीं शती ई० के मध्य की तीन श्वेतांबर मूर्तियां मिली हैं। मतियों के ऊपरी भाग शिखर के रूप में निर्मित हैं। सभी उदाहरणों में जिन आकृतियां ध्यानमुद्रा में बैठी हैं। इनमें केवल ऋषभ एवं पावं की ही पहचान सम्भव है। बारहवीं शती ई० की एक मूर्ति विमलवसही की देवकूलिका १७ में सरक्षित है। यहां जिनों के लांछन नहीं उत्कीर्ण हैं पर यक्ष-यक्षी निरूपित हैं। यक्ष-यक्षी के आधार पर केवल दो ही जिनों, ऋषभ एवं नेमि, की पहचान सम्भव है। जिनों के सिंहासनों पर चतुर्भुज शान्तिदेवी और तोरणों पर प्रज्ञप्ति, वज्रांकुशी. अच्छता एवं महामानसी महाविद्याओं की मूर्तियां हैं। उत्तरप्रदेश-मध्यप्रदेश–इस क्षेत्र में दोनों वर्गों की चौमुखी मूर्तियां निर्मित हुई। पर दूसरे वर्ग की मतियों की संख्या अधिक है । प्रथम वर्ग की ल० आठवीं शती ई० को एक मूर्ति भारत कला भवन, वाराणसी (७७) में है। इसमें सभी जिन निर्वस्त्र हैं और कायोत्सर्ग में साधारण पीठिका पर खड़े हैं। जिनों के लांछन नहीं उत्कीर्ण हैं। प्रत्येक जिन की पीठिका पर दो छोटी ध्यानस्थ जिन मूर्तियां उत्कीर्ण हैं। कौशाम्बी से मिली एक मूर्ति (१० वीं शती ई०) इलाहाबाद संग्रहालय (ए० एम० ९४३) में है ।' लांछन विहीन चारों जिन मूर्तियां कायोत्सर्ग में खड़ी हैं। समान विवरणों वाली दो अन्य मूर्तियां क्रमशः ग्वालियर एवं मथुरा (१५२९) संग्रहालयों में सुरक्षित हैं। कंकाली टीला, मथुरा से मिली और राज्य संग्रहालय, लखनऊ (जे २३६) में सुरक्षित १०२३ ई० की एक मूर्ति में ध्यानमुद्रा में चार जिन मूर्तियां उत्कीर्ण हैं। जिनों के लांछन नहीं प्रदर्शित हैं। पर पीठिका-लेख में इसे वर्धमान (महावीर) का चतुर्बिम्ब बताया गया है। मनि का शीर्ष भाग मन्दिर के शिखर के रूप में निर्मित है। प्रत्येक जिन सिंहासन, धर्मचक्र, त्रिछत्र एवं वृक्ष की पत्तियों से युक्त हैं। बटेश्वर (आगरा) से मिली एक मूर्ति (११ वीं शती ई०) राज्य संग्रहालय, लखनऊ में है। लांछन रहित जिन ध्यानमुद्रा में विराजमान हैं। प्रत्येक जिन के साथ सिंहासन, भामण्डल, त्रिछत्र, दुन्दुभिवादक, उड्डीयमान मालाधर एवं उपासक आमतित हैं। देवगढ से इस वर्ग की पांच मूर्तियां मिली हैं। सभी उदाहरणों में लांछन विहीन जिन मतियां कायोत्सर्ग में उत्कीर्ण हैं। १ जैन, नीरज, 'पुरातात्विक संग्रहालय, ग्वालियर को जैन मूर्तियां', अनेकान्त, वर्ष १६, अं० ५, पृ० २१४ २ अमेरिकन इन्स्टिट्यूट ऑव इण्डियन स्टडीज, वाराणसी, चित्रसंग्रह १५६.७१, १५६.६८ ३ श्रीवास्तव, वी० एस०, केटलाग ऐण्ड गाइड टु गंगा गोल्डेन जुबिली वाल्यूम, बीकानेर, बम्बई, १९६१, पृ० १९ ४ शाह, यू० पी०, अकोटा ब्रोन्जेज, पृ०६०-६१, फलक ७० ए, ७० बी, ७१ ए ५ मूलनायक की मूर्तियां सम्प्रति सुरक्षित नहीं हैं। ६ चन्द्र, प्रमोद, पू०नि०, पृ० १४४ ७ ठाकुर, एस० आर०, केटलाग ऑव स्कल्पचर्स इन दि आकिअलाजिकल म्यूजियम, ग्वालियर, लश्कर, पृ० २०; अग्रवाल, वी० एस०पू०नि०,पृ० ३० ८ ये मूर्तियां मन्दिर १२ की चहारदीवारी एवं मन्दिर १५ से मिली हैं। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002137
Book TitleJain Pratimavigyan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMaruti Nandan Prasad Tiwari
PublisherParshwanath Shodhpith Varanasi
Publication Year1981
Total Pages370
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Culture
File Size13 MB
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