SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 137
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ जिन - प्रतिमाविज्ञान ] ११९ पार्श्व के यक्ष के हाथों में पुष्प और घट (? निधिपात्र ) हैं । वाम पार्श्व की यक्षी के दाहिने हाथ में पुष्प' और बायें में बालक हैं । अम्बिका का दूसरा पुत्र उसके दक्षिण पार्श्व में खड़ा है । पूर्व मध्ययुगीन मूर्तियां गुजरात राजस्थान — गुजरात और राजस्थान में जहां ऋषभ और पार्श्व की स्वतन्त्र मूर्तियां छठीं -सातवीं शती ई० में उत्कीर्णं हुईं (अकोटा), वहीं नेमि और महावीर की मूर्तियां नवीं शती ई० के बाद की हैं । यह तथ्य नेमि और महावीर की इस क्षेत्र में सीमित लोकप्रियता का सूचक है। इस क्षेत्र की मूर्तियों में या तो शंख लांछन या फिर लेख नेमिनाथ का नाम उत्कीर्ण है । यक्ष-यक्षी के रूप में सर्वानुभूति एवं अम्बिका ही निरूपित हैं । ल० दसवीं शती ई० की एक ध्यानस्थ मूर्ति कटरा (भरतपुर) से मिली है और भरतपुर राज्य संग्रहालय (२९३ ) में सुरक्षित है । यहां शंख लांछन उत्कीर्ण है पर यक्ष-यक्षी अनुपस्थित हैं । ११७९ ई० की एक ध्यानस्थ मूर्ति कुम्भारिया के पार्श्वनाथ मन्दिर की देवकुलिका २२ में है । लेख में नेमिनाथ का नाम उत्कीर्ण है । बारहवीं शती ई० की शंख - लांछन- युक्त एक मूर्ति अमरसर ( राजस्थान) से मिली है और सम्प्रति गंगा गोल्डेन जुबिली संग्रहालय, बीकानेर (१६५९) में सुरक्षित है । 3 लूणवसही गर्भगृह की विशाल व्यानस्थ मूर्ति में शंख लांछन और सर्वानुभूति एवं अम्बिका निरूपित हैं । उत्तरप्रदेश-मध्यप्रदेश – इस क्षेत्र की नेमि मूर्तियों में अष्ट-प्रातिहार्यो, शंख लांछन और सर्वानुभूति एवं अम्बिका " का नियमित अंकन हुआ है । स्मरणीय है कि नेमि के लांछन और यक्ष-यक्षी के चित्रण सर्वप्रथम इसी क्षेत्र में प्राप्त होते हैं । स्वतन्त्र नेमि मूर्तियों में बलराम और कृष्ण का निरूपण भी केवल इसी क्षेत्र में हुआ है । राज्य संग्रहालय, लखनऊ में दसवीं से बारहवीं शती ई० के मध्य की आठ मूर्तियां हैं। सभी उदाहरणों में शंख लांछन, चामरधर, सिंहासन, त्रिछत्र एवं मामण्डल उत्कीर्ण हैं । पांच उदाहरणों में यक्ष-यक्षी भी निरूपित हैं । यक्ष-यक्षी सामान्यतः सर्वानुभूति एवं अम्बिका हैं। पांच उदाहरणों में नेमि कायोत्सर्ग में खड़े हैं । एक उदाहरण (६६.५३) के अतिरिक्त अन्य सभी में नेमि निर्वस्त्र हैं । दो उदाहरणों में नेमि के साथ बलराम और कृष्ण भी आमूर्तित हैं । बटेश्वर (आगरा) की दसवीं शती ई० की एक ध्यानस्थ मूर्ति (जे ७९३ ) में सर्वानुभूति एवं अम्बिका की मूर्तियां उत्कीर्ण हैं । चामरधरों के समीप द्विभुज बलराम एवं दाहिने हाथ में चषक है किन्तु बायें हाथ का आयुध स्पष्ट नहीं है । कृष्ण की दक्षिण भी प्रदर्शित हैं । ल० ग्यारहवीं पीठिका पर चार जिनों और कृष्ण की मूर्तियां हैं । बलराम के भुजा में शंख है और वाम भुजा पर स्थित है । मूलनायक के स्कन्धों पर जटाएं शती ई० की एक वेतांबर मूर्ति (६६.५३) में नेमि कायोत्सर्ग में खड़े हैं (चित्र २८ ) । परिकर में तीन जिनों एवं चतुर्भुज बलराम और कृष्ण की मूर्तियां हैं। तीन सर्पफणों के छत्र और वनमाला से शोभित बलराम के तीन अवशिष्ट हाथों में से दो में मुसल और हल प्रदर्शित हैं, और तीसरा जानु पर स्थित है । किरीटमुकुट एवं वनमाला से सज्जित कृष्ण की भुजाओं में अभयमुद्रा, गदा, चक्र और शंख प्रदर्शित हैं । मैहर (म०प्र०) की ग्यारहवीं शती ई० की एक खड्गासन मूर्ति (१४.०.११७) में सिंहासन - छोरों के स्थान पर यक्ष-यक्षी मूलनायक के वाम पार्श्व में आमूर्तित हैं । यक्षी अम्बिका है । परिकर में एक चतुर्भुज देवी निरूपित है जिसके हाथों अभयमुद्रा, पद्म, पद्म और कलश हैं । १९७७ ई० की एक ध्यानस्थ मूर्ति (जे ९३६) में यक्ष सर्वानुभूति है पर यक्षी १ अम्बिका की एक भुजा में आम्रलुंबि के स्थान पर पुष्प का प्रदर्शन मथुरा की सातवीं-आठवीं शती ई० की कुछ अन्य मूर्तियों में भी देखा जा सकता है । २ अमेरिकन इन्स्टिट्यूट ऑव इण्डियन स्टडीज, वाराणसी, चित्र संग्रह १५७.१७ ३ श्रीवास्तव, वी० एस० पू०नि०, पृ० १४ ४ कुछ उदाहरणों में सामान्य लक्षणों वाले यक्ष-यक्षी भी निरूपित हैं । Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002137
Book TitleJain Pratimavigyan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMaruti Nandan Prasad Tiwari
PublisherParshwanath Shodhpith Varanasi
Publication Year1981
Total Pages370
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Culture
File Size13 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy