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________________ जिन-प्रतिमाविज्ञान ] ओसिया के महावीर मन्दिर के समीप की पूर्वो देवकुलिका के वेदिकाबंध पर ऋषभ के जीवनदृश्य उत्कीर्ण हैं। इस पहचान का मुख्य आधार नीलांजना के नृत्य का अंकन है। उत्तर की ओर ऋषम की माता नवजात शिश के साथ लेटी है। समीप ही गोद में शिशु लिए अजमुख नगमेषी आमूर्तित है। जैन परम्परा में उल्लेख है कि जिनों के जन्म के बाद इन्द्र ने अपने सेनापति नैगमेषी को शिशु को अभिषेक हेतु मेरु पर्वत पर लाने का आदेश दिया था। उपर्युक्त चित्रण नैगमेषी द्वारा शिशु को मेरु पर्वत पर ले जाने से सम्बन्धित है। जैन परम्परा में यह भी उल्लेख है कि नगमेषी ने मरुदेवी को गहरी निद्रा में सुलाकर उनके समीप शिशु की एक प्रतिकृति रख दो और शिशु को मेरु पर्वत पर ले गया । आगे गज पर दो आकृतियां बैठी हैं, जिनमें से एक की गोद में शिशु है। यह इन्द्र द्वारा शिशु (ऋषभ) को मेरु पर्वत पर ले जाने का दृश्य है। आगे घट एवं वाद्ययंत्रों से युक्त ३५ आकृतियां उत्कीर्ण हैं, जो ऋषभ के जन्म-कल्याणक पर आनन्दोत्सव मना रही हैं। आगे ध्यान मुद्रा में बैठी इन्द्र की आकृति है, जिसकी गोद में शिशु (ऋषभ) है । पूर्वी वेदिकाबन्ध पर ऋषभ के राज्यारोहण का दृश्य है। दक्षिणी वेदिकाबन्ध पर पशुओं और योद्धाओं की मूर्तियां एवं युद्ध से सम्बन्धित दृश्य हैं। समीप ही नृत्य करती एक स्त्री की आकृति है जिसके पास वाद्यवादन करती तीन आकृतियां हैं। यह नीलांजना के नृत्य का अंकन है । समीप ही भिक्षापात्र एवं मुख-पट्टिका से युक्त दो साधु आकृतियां उत्कीर्ण हैं जो सम्भवतः ऋषभ की मूर्तियां हैं। कुम्भारिया के शान्तिनाथ मन्दिर की पश्चिमी भ्रमिका के वितान (उत्तर से प्रथम) पर ऋषम के जीवनदृश्यों के विस्तृत चित्रण हैं (चित्र १४)। सारा दृश्य चार आयतों में विभाजित है। बाहर से प्रथम आयत में पूर्व की ओर (बायें से) मरु देवी और नाभि की वार्तालाप करती आकृतियां उत्कीर्ण हैं। आगे सेविकाओं से वेष्टित मरुदेवी शय्या पर लेटी हैं। समीप ही १४ मांगलिक स्वप्न उत्कीर्ण हैं। उत्तर की ओर (बांयें से) भी नाभि एवं मरु देवी की वार्तालाप में तियां हैं। आगे मरुदेवी की शय्या पर लेटी आकृति भी उत्कीणं है जिसके समीप चार वृषभ एवं अश्व पर आरूढ एक आकृति बनी हैं। यह सम्भवतः ऋषभ के पूर्वभव (वज्रनाभ) के जीव के मरु देवी के गर्भ में च्यवन करने का चित्रण है। अश्वारूढ़ आकृति वज्रनाभ का जीव है। आगे नाभिराय को जैन आचार्यों से मरुदेवी के स्वप्नों का फल पूछते हए दरशाया गया है। दक्षिण की ओर ऋषभ के राज्यारोहण एवं विवाह के दृश्य हैं। दुसरे आयत में पूर्व की ओर ऋषभ को शासक के रूप में विभिन्न कलाओं का ज्ञान देते हुए दिखाया गया है। जैन परम्परा में ऋषभ को सभी कलाओं का प्रणेता कहा गया है। इन दृश्यों में ऋषभ को पात्र (प्रथम पात्र) लिए और युद्ध की शिक्षा देते हुए दिखाया गया है। उत्तर की ओर ऋषभ की दीक्षा का दृश्य उत्कीर्ण है। पद्मासन में ऋषभ की पांच मतियां उत्कीर्ण हैं, जिनमें वाम भुजा गोद में है और दक्षिण से ऋषभ अपने केशों का लंचन कर रहे हैं। पांचवीं आकृति के समक्ष इन्द्र खड़े हैं जो ऋषम से एक मुष्टि केश सिर पर ही रहने देने का अनुरोध कर रहे हैं। जैन परम्परा के अनुसार इन्द्र ने ही ऋषभ के लुंचित केशों को जल में प्रवाहित किया था। आगे कायोत्सर्ग-मुद्रा में ऋषभ तपस्यारत हैं। ऋषभ के पाश्वों में खड्गधारी नमि-विनमि की आकृतियां हैं। जैन परम्परा में उल्लेख है कि राज्य-लक्ष्मी प्राप्त करने की इच्छा से नमि-विनमि तपस्यारत ऋषभ के समीप काफी समय तक खड़े रहे। अन्त में धरणेन्द्र ने उपस्थित होकर नमि-विनमि को ४८ हजार विद्याओं का स्वामित्व प्रदान किया। पश्चिम की ओर खड्गधारी नमि-विनमि की आकृतियां उत्कीर्ण हैं । दक्षिण की ओर ऋषभ का समवसरण है जिसके मध्य में ऋषभ की ध्यानस्थ मूर्ति है। तीसरे आयत में ऋषभ के दो पुत्रों, भरत एवं बाहुबली के मध्य हुए युद्ध का विस्तृत चित्रण है। इन दृश्यों में दोनों पक्षों की सेनाओं के युद्ध के साथ ही भरत एवं बाहुबली के द्वन्द्वयुद्ध भी प्रदर्शित हैं। जैन परम्परा के अनुसार यद्ध में १ मांगलिक स्वप्नों में चतुर्भुज महालक्ष्मी ध्यानमुद्रा में विराजमान है। महालक्ष्मी की निचली भुजाएं गोद में रखी हैं और ऊपरी भुजाओं में सनाल पद्म हैं। पद्य के ऊपर की दो गज आकृतियां देवी का अभिषेक कर रही हैं। २ त्रि०२०पु०च० १.३.१३४-४४ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002137
Book TitleJain Pratimavigyan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMaruti Nandan Prasad Tiwari
PublisherParshwanath Shodhpith Varanasi
Publication Year1981
Total Pages370
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Culture
File Size13 MB
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