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पावा की अवस्थिति सम्बन्धी विभिन्न मत : ६७ साहित्यिक साक्ष्यों एवं स्थल-सर्वेक्षण के आधार पर उक्त स्थलों का विवरण इस प्रकार है :
१. पपतार :
देवरिया जनपद के पडरौना तहसील स्थित पपतार की पावा के रूप में चर्चा मिलती है । मात्र गोरांगगोपाल सेनगुप्त' ने इस ग्राम को पावा के रूप में पहचान की है । पडरौना तहसील के सर्वेक्षण से ज्ञात होता है कि यहाँ पपतार नामक ग्राम का कोई अस्तित्व नहीं है । विद्वान् की इस मान्यता का आधार क्या रहा है इस सम्बन्ध में कुछ कह पाना कठिन है ।
२. पवैय्या :
डॉ० हीरालाल जैन के मत में गोरखपुर जनपद स्थित पवैय्या नामक स्थान पावा है किन्तु डॉ० जैन अपने मत के समर्थन में कोई साहित्यिक अथवा पुरातात्त्विक साक्ष्य प्रस्तुत नहीं कर पाते हैं । स्वतन्त्र जनपद घोषित होने के पूर्व देवरिया गोरखपुर जनपद का ही अंग था । अतः कुशीनगर का निकटवर्ती क्षेत्र गोरखपुर जनपद का ही अंग रहा होगा । अतः सम्भव है पहले गोरखपुर में सम्मिलित वर्तमान पडरौना अथवा पपउर ( देवरिया ) ही असावधानीवश पवैय्या उल्लिखित अथवा मुद्रित हो गया हो ।
३. माझा :
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बिहार प्रदेश के गोपालगंज जनपद की सदर तहसील में पूर्वोत्तर रेलवे की गोपालगंज छपरा लूप लाइन पर गोपालगंज के निकट स्थित माझा ( माझागढ़ ) को कपिलदेवगिरि ने पावा के रूप में पहचान करने का प्रयास किया है। लेकिन अपने पक्ष में वे कोई ठोस तर्क नहीं दे पाये हैं जिससे उसे पावा के रूप में स्वीकार किया जा सके ।
१. सेनगुप्त, गोरांगगोपाल, 'डेलीलैण्डरुट्स इन एंशिएंट इण्डिया', पृ० १-४, पटना १९६८ ।
२. जैन, हीरालाल, 'पावासमीक्षा' - सं० कन्हैयालाल सरावगी, पृ० १५, अशोक प्रकाशन, कटरा बाजार, छपरा बिहार १९७२ ।
३. गिरि, कपिलदेव - 'महावीर की निर्वाण भूमि पावा की स्थिति', श्रमण,
नवम्बर १९७० ।
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