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________________ ..४६ : महावीर निर्वाणभूमि पावा : एक विमर्श होता है । बुद्ध के महापरिनिर्वाण के पश्चात्, मल्लों द्वारा उनके अन्त्येष्टिउत्सव के वर्णन से ज्ञात होता है कि आयुष्मान् आनन्द द्वारा बुद्ध के महापरिनिर्वाण का सन्देश प्राप्त होने पर संस्थागार में एकत्रित कुशीनारा के मल्ल गन्धद्रव्यों, मालाओं तथा वाद्यों को एकत्रित कर ५ हजार थान वस्त्र लेकर बुद्ध के महापरिनिर्वाण स्थलो उपवन गये । वहाँ पहँच कर वे बुद्ध के शव की गीत, वाद्य, नृत्य, माला, गन्ध आदि से अर्चना करते हए ५ दिन तक वितान की रचना करते रहे। सातवें दिन उनके पार्थिव शरीर को वितान में रखकर वाद्य, गीत, गन्ध तथा माला से पजित, मानित तथा सत्कृत करते हुए, वे कुकुट बन्धन चैत्य पहुँचे। वहाँ उन लोगों ने बुद्ध के शरीर को नये वस्त्र में लपेट कर, धुने हुए कपास में लपेटा। पुनः नये वस्त्र से लपेट कर धुने हुए कपास में लपेटा । इस प्रकार की प्रक्रिया ५०० बार को गई । तत्पश्चात् बुद्ध के शरीर को लोहे के तैल-द्रोणि में रखकर, दूसरे तैल द्रौणि से ढककर विभिन्न गन्धों की चिता बनाकर उस पर द्रोणि को रक्खा। उपर्युक्त विवरण से ज्ञात होता है कि मल्लराष्ट्र के नागरिक आरम्भ से हो गणतन्त्रीय शासन-प्रणाली, धार्मिक, वीर, वैभवसम्पन्न, विविध कलाओं इत्यादि विधाओं में पारंगत थे । महावीर और बुद्ध महावीर तथा बद्ध दोनों की जीवन-गाथा में बहुत कुछ समानतायें हैं। दोनों का जन्म गणराज्यों के राजकुलों में हुआ था। महावीर का जन्म वज्जि के 'अष्टकुलिका' लिच्छवी गणतन्त्र की राजधानी वैशाली से राजगृह जाने वाले महापथ पर स्थित पहले सन्निवेश (सार्थवाह का पड़ाव) कुण्डग्राम में हुआ था। इसी कारण इन्हें वैशालिक कहा जाता था। बुद्ध का जन्म शाक्यों की राजधानी कपिलवस्तु के निकट लुम्बिनी में हुआ था। इसी कारण इन्हें शाक्यपुत्र कहा जाता है। महावीर और बुद्ध दोनों क्षत्रिय कुलरत्न थे और इनका सम्बन्ध इक्ष्वाकुवंश से था। दोनों युगप्रवर्तक एवं जीवन कल्याण मार्ग की प्राप्ति हेतु तरुणावस्था में ही अनगार बन गये। दोनों कैवल्य अथवा बुद्धत्व प्राप्त कर अपने ज्ञान से विश्व को आलोकित किए। महावीर के बचपन का नाम वर्धमान तथा बुद्ध का सिद्धार्थ था। इसके अतिरिक्त भी दोनों महापुरुष विभिन्न संज्ञाओं से सम्बोधित किये जाते थे। वर्धमान को महावीर, निर्ग्रन्थ, ज्ञातपुत्र, कैवल्यमार्गदर्शक, Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002135
Book TitleMahavira Nirvan Bhumi Pava Ek Vimarsh
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBhagwati Prasad Khetan
PublisherParshwanath Shodhpith Varanasi
Publication Year1992
Total Pages268
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & History
File Size12 MB
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