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साहित्यिक साक्ष्य : २३
में बँट गये । किन्तु उन्हें अर्थात् बौद्धभिक्षुकों को कलह रहित होकर बौद्धसंघ को चिरस्थायी बनाना चाहिये । बुद्ध ने इस उपदेश के लिए सारिपुत्र की प्रशंसा की ।
'माज्झिमनिकाय ' के सामगामसुत्त, 'दीर्घनिकाय' के 'पासादिक सुत्त ' ओर ' परिपापसुत्त' में लगभग एक ही तथ्य वर्णित है । महावीर के पश्चात् उनके अनुयायियों में परस्पर कलह की स्थिति उत्पन्न हो गई थी एवं पावा में उपस्थित बुद्ध को इसकी सूचना आनन्द से मिली और आनन्द को पावा के चुन्द से । तृतीय प्रकरण कुछ स्वतन्त्र है । इसमें महावीरानुयायियों में कलह को देखते हुए अपने संघ को बिखेरने से रोकने हेतु बुद्ध ने भिक्षुओं को उपदेश दिलवाया था ।
'सुत्तपिटक' के 'खुद्दक निकाय की पुस्तक 'उदान" से बुद्धकालीन पावा में अजकलापक या आजकपालिय चैत्य में अजकलाप नामक भयंकर यक्ष के वास का पता चलता है । वह नगरवासियों को निरन्तर आतंकित किया करता था, उसे नित्य बकरे की बलि अर्पित की जाती थो । बुद्ध पावा में अजकलापक या अजकपालिय चैत्य में विहार कर रहे थे । इस यक्ष ने उन्हें भयभीत करने का प्रयास किया था, परन्तु बुद्ध ने अपने प्रभाव से उसे विनोत कर दिया था। डा० आर० एन० मिश्र ने अपनी पुस्तक 'यक्ष कल्ट एण्ड आइकनोग्राफी' में इस प्रकरण का विस्तार से विवेचन किया है ।
उल्लेखनीय है कि 'उदान' के अनुसार अजकलापक चैत्य पाटलिग्राम में था जबकि इसकी अट्ठकथा में इसे पावा में स्थित बताया गया है । 'उदान' के 'अजकलापक सुत्त' में यह विवरण इन शब्दों में मिलता है—
"एके समयं भगवा पावायं विहरति । अजकलापके चेतिये अजकलापकस्स यक्खस्स भवने । तेन खो पन समयेन भगवा स्तन्धकरातिमि सायं अक्खोकासे निसिन्नो होति, देवोक एकमेव फुसायति । अथ खो अजकलापको पक्खो भगवतो भयं छम्मि तत लोभहंसं उप्पाहेतु कामोयेन
१. उदान ( हि० ) भिक्षु जगदीश काश्यप, महाबोधि सभा, सारनाथ, बुद्धाब्द २४८२ ।
२. यक्ष कल्ट एण्ड आइकनोग्राफी, पृ० ११४- ११५, मुंशीराम मनोहरलाल, नई दिल्ली, प्र० सं० १९८१ ।
३. उदान अट्टकथा ( हि० ), ( अजकलापक सुत्त), भिक्षु जगदीश काश्यप, नवनालन्दा महाविहार नालन्दा, पटना, १९५९ ।
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