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मागधदेश विशाल नयर पावापुर जाणो । जिनवर श्रीमहावीर तास निर्वाण बखाणो || अभिनव एक तलाव तस मध्ये जिनमंदिर | रचना रचित विचित्र सेवक जास पुरंदर ॥ जिनवर श्रीमहावीर तिहाँ कर्म हणि मोक्षे गया । ब्रह्म ज्ञानसागर वदति सिद्ध तणु पद पामया ||५||
साहित्यिक साक्ष्य : १७
मराठी जैन साहित्य के प्राचीनतम लेखकों में मान्य गणकीर्ति ( १५वीं सदी उत्तरार्द्ध) ने गद्य रचना 'तीर्थवन्दना' के ६७वें परिच्छेद में तीर्थक्षेत्रों का वन्दन किया है । इसमें पावा का उल्लेख इन शब्दों में किया गया है :
त्या सिद्धासि नमस्कार माझा पावापुर नगरि श्री वर्धमान चौवोसवा तिथंकरु सिद्धिसि पावले । त्या सिद्ध क्षेत्रासि नमस्कार माझा |
मूलसंघ- बलात्कारगण को लातूर शाखा के भट्टारक अजितकोति के शिष्य चिलणा पण्डित ( १६५९ - १६७०) ने मराठी रचना 'तोर्थवन्दना' में पावापुरी का इस प्रकार चित्रण किया है
सिद्धार्थ
महोपति वीर जन्मले
कुण्डलपुरो । त्रिसल्यो उदरी ॥
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तीसवर्ष कुमार दोक्षा सिकारी ।
पावापुरी मुक्ति पद्मसरोवरो ॥७॥
दिगम्बर प्रतिक्रमण पीठिका में पावा के विषय में उल्लिखित है कि उर्ध्वाधस्तिर्यग्लोके सिद्धयतनानि नमस्करोमि सिद्धनिषिद्धका अष्टापदपर्वते, सम्मेत् उर्जयन्ते चम्पायां पावायां मध्यमायां हस्तिपालिका मण्डपे नमस्यामि ।
महावीर के जीवन चरित के विषय में श्वेताम्बर और दिगम्बर परम्परा में निम्न मुख्य बिन्दुओं पर मतभेद है
प्रव्रज्या ग्रहण करने के समय वे विवाहित थे अथवा नहीं, उनके माता-पिता जीवित थे अथवा नहीं, उनकी माता त्रिशला का राजा चेटक से सम्बन्ध, महावीर की निर्वाण तिथि आदि । प्रव्रज्या के समय दिगम्बर परम्परा उन्हें अविवाहित मानती है जबकि अन्य मत में प्रव्रज्या के समय वे एक पुत्री के पिता थे । ३० वर्ष की आयु में प्रव्रज्या के समय दिगम्बर परम्परानुसार उनके माता-पिता जीवित थे, जबकि श्वेताम्बर परम्परा
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