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प्रतिष्ठित व्यवसायी श्री भगवती प्रसाद खेतान कृत 'महावीर निर्वाण भूमि : पावा' के प्रकाशन का स्वागत है। प्राचीन मल्ल गण
राज्य की सुप्रसिद्ध राजधानी पावा नगरी के निर्धारण हेतु यह ग्रंथ न केवल इतिहास पेशे से असम्बद्ध एक इतिहास प्रेमी महानुभाव के दीर्घकालीन गहन अध्यवसाय, अनुसंधान तथा चितन का परिचायक है, अपितु प्राचीन क्षेत्रीय ऐतिहासिक भूगोल का गवेषणापूर्ण अध्ययन भी है। इस प्रस्तुति में साहित्यिक, ऐतिहासिक, पुरातात्त्विक तथा भौगोलिक साक्ष्यों के विश्लेषणात्मक विवेचन पर आधारित वास्तविक पावापुरी की वैज्ञानिक ढंग से पुनः खोज एवं पहचान करने तथा आधुनिक पडरौना नगर को प्राचीन पावा साबित करने का तर्कसंगत प्रयास है। इस प्रकाशन से पुरातत्त्ववेत्ता जनरल कनिंघम के समय से चला पर अभी तक दबा हुआ विवादास्पद विषय खेतान जी द्वारा लाये नये प्रकाश से फिर उभर कर जैन धर्माचार्यों, इतिहास विदों तथा मनीषियों के लिये निश्चय ही प्रासंगिक बनेगा, बुकनन और कनिंघम के विचारों को मान्यता मिलेगी। खेतान जी को इसका श्रेय प्राप्त होगा तथा तीर्थङ्कर महावीर स्वामी की निर्वाण-स्थली के रूप में परम्परा को तिरस्कृत किये बिना पडरौना को जैन सम्प्रदाय का तीर्थस्थल सुनिश्चित किया जायगा।
प्रो० हीरालाल गुप्ता भू० पू० अध्यक्ष, भारतीय इतिहास कांग्रेस महावीर के निर्वाण स्थल 'पावा' के सम्बन्ध में पुरातत्त्वविदों में मतभेद रहा है। कनिंघम ने पडरौना ( कुशीनगर के उत्तर, जिला देवरिया ), कारलाइल ने फाजिलनगर (जिला देवरिया ) तथा वी० ए० स्मिथ ने राजगृह के निकट माना है। एक व्यवसायी होते हुए भी श्री भगवती प्रसाद खेतान ने अपने शोध ग्रन्थ 'महावीर निर्वाण भूमि पावा : एक विमर्श' में बौद्ध, जैन, संस्कृत तथा आधुनिक ग्रन्थों के गहन अध्ययन एवं पुरातत्व-विद्वानों से विवेचना कर पडरौना को ही प्राचीन पावा प्रमाणित किया है । लेखक का यह सुझाव महत्त्वपूर्ण है कि 'यदि पडरौना के प्राचीन टीले के उत्खनन के साथ न्याय किया जाय तो महत्त्वपूर्ण तथ्य आयेंगे।' भारतीय पुरातत्त्व सर्वेक्षण विभाग यदि इस चुनौती को स्वीकार कर आवश्यक कार्यवाही करे तो इतिहास की एक महत्त्वपूर्ण समस्या का समाधान हो जायेगा। श्री खेतान का शोधकार्य प्रशंसनीय है । मैं इन्हें साधुवाद देता हूँ।
प्रो० हरिशंकर श्रीवास्तव
पूर्व अध्यक्ष इतिहास विभाग, Jal Education in emalionai
गोरखपुर विश्वविद्यालय