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आत्म-निवेदन पडरौना ( जनपद देवरिया, उ० प्र०) मेरा जन्म स्थान है पर उद्योग एवं व्यापारिक कार्यों के कारण मैं प्रायः बम्बई में ही रहा। जब कभी भी मैं पडरौना आता था तो यहाँ से तीन कि०मी० दूर पूर्व में स्थित श्री सिद्धनाथ जी की पावन एवं बहुचित सिद्धस्थली 'सिधुवाँ' का दर्शन करने अश्वय जाया करता था । प्राचीन, मनोरम और आध्यात्मिक शान्तिप्रदान करने वाले इस स्थल की ख्याति सदियों पूर्व से इस क्षेत्र में व्याप्त है। इसकी ऐतिहासिक, सांस्कृतिक एवं आध्यात्मिक पृष्ठभूमि जानने के लिए मैं शुरू से ही जिज्ञासु रहा हूँ। इसी क्रम में साहित्यिक एवं धार्मिक ग्रन्थों, ऐतिहासिक एवं पुरातात्त्विक कृतियों के अध्ययन के दौरान इसकी सांस्कृतिक एवं ऐतिहासिक विरासत के विषय में जानकर प्रफुल्लित हो उठा।
मुझे यह जानकर आश्चर्य हुआ कि यह क्षेत्र राम, कृष्ण, महावीर, बुद्ध आदि महापुरुषों की चरणधूलि द्वारा पवित्र हुआ है । गोरखपुर गजेटियर से सूचना मिलती है कि एक सिद्ध महापुरुष ने दक्षिण-पश्चिम से आकर यहाँ साधना की थी एवं सिद्धि प्राप्त कर समाधिस्थ हुए थे। किंवदन्तियों के अनुसार श्री सिद्धनाथ जी गिरनार से यहाँ पधारे थे। गिरनार प्राचीन काल से लेकर आज तक जैन धर्म का एक महान केन्द्र रहा है। उक्त तथ्यों के आलोक में सहसा मुझे अन्तःप्रेरणा हुई कि महापुरुषों की चरण-रज से पावन भूमि पडरौना ही, वह प्राचीन पावा है जहाँ महावीर ने निर्वाण प्राप्त किया था, जिसे प्राचीन बौद्ध तथा जैन धर्म ग्रन्थों में पवित्र भूमि के रूप में जाना जाता रहा है। सम्भवतः सिद्धनाथ जी का यहाँ आने का एकमात्र प्रयोजन यही रहा होगा कि महावीर के निर्वाण की पवित्र स्थली को अपनी साधना एवं समाधि का स्थल बनावें।
इस विषय पर अध्ययन, मनन एवं चिन्तन से मेरी इन मान्यताओं की उत्तरोत्तर पुष्टि होती रही कि यहाँ की मिट्टी के कण-कण, जल की बंद-बद एवं वाय की तरंगायित तरंगों से इसकी पवित्रता का बोध होता रहता है । यह पवित्र भूमि सर्वदा ही अपना मूक संदेश देती रहो है, भले ही लोग उसे अनुभव करने में असमर्थ रहें।
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