________________
९४ : महावीर निर्वाणभूमि पावा : एक विमर्श
इस क्षेत्र से प्राप्त शुंग युग की विशाल यक्ष प्रतिमा का निचला भाग तथा अन्य खण्डित मूर्तियाँ लखनऊ संग्रहालय में सुरक्षित हैं। उक्त टीले के पास में प्राप्त कई जैन मूर्तियाँ, गोस्वामी तुलसीदास विद्यालय, पड़रौना में रखी हुई हैं। भारतीय पुरातत्त्व सर्वेक्षण विभाग द्वारा किये गये उत्खनन में प्राप्त मूर्तियाँ पुरातत्त्व संग्रहालय, पटना में हैं। टीले के उत्तरी ओर सड़क के उस पार महावीर की काले पत्थर की विशाल जैनमूर्ति, अब भी पाकड़ के एक वृक्ष के नीचे पड़ी हुई है, जिसे देखकर बुकनन' ने रेखांकन किया था जो रेखाचित्र ईस्टर्न इण्डिया नामक ग्रन्थ में प्रकाशित है।
चीनी यात्री ह्वेनसांग भी पावा (पड़रौना) आया था यह सुनिश्चित है । कनिंघम ने जुलियन के सन्दर्भ से ह्वेनसांग द्वारा की गई भारत यात्रा का सिलसिलेवार वर्णन करते हुए यह बताया है कि ह्वेनसांग १ जनवरी ६३७ से ३ जनवरी सन् ६३७ तक कुशीनगर में रहा।"२
कनिंघम ने ह्वेनसांग की कुशीनगर से पड़रौना (पावा) की यात्रा का मानचित्र प्रस्तुत किया है, जो संलग्न है । कनिंघम प्रथम विद्वान् हैं जिन्होंने पड़रौना को पावा घोषित किया है । परवर्ती अनेक विद्वानों द्वारा समय-समय पर इस तथ्य का अनुमोदन किया गया है। वस्तुतः पड़रौना के नाम से भी पावा की एकात्मता का बोध होता है। उपर्युक्त सन्दर्भो के आलोक में पड़रौना को पावा के रूप में प्रतिष्ठित करने हेतु सविस्तार विचार आवश्यक होगा। पावा के अनुसन्धानकर्ताओं की सूची में पावा के रूप में पड़रौना का नाम प्रमुख रहा है। साहित्य एवं पुरातत्त्व के आधार पर अद्यावधि विद्वानों द्वारा लिखित महावीर निर्वाण स्थली पावा के सन्दर्भ में पड़रौना के समर्थन में साक्ष्य प्रस्तुत करने वाली सामग्री का विवरण इस प्रकार है१. टर्नर, जी- बुद्धिस्ट एनल्स (नोट प्रथम बुद्धघोष), जरनल आव
एशियाटिक सोसाइटी नं० १९ वाल्यूम भाग २, कलकत्ता १८३८ ।
१. मान्टगोमरी मार्टिन, दो हिस्ट्री एन्टीक्यूटीज टोपोग्राफी एण्ड स्टेटिक्स
ऑफ ईस्टर्न इंडिया, जिल्द-द्वितीय-भागलपुर-गोरखपुर, पृ० ३५४ से
३५७ । २. कनिंघम, अलेक्जेन्डर, रिपोर्ट ऑफ दी आर्केलॉजिकल-सर्वे ऑफ इंडिया,
जिल्द-१, पृ० ६९ शिमला १८७१ ।
Jain Education International
For Private & Personal Use Only
www.jainelibrary.org