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पावा की अवस्थिति सम्बन्धी विभिन्न मत : ९१ प्रदेश के नालन्दा जनपद की पावापुरी का निर्माण हुआ एवं दिन-प्रतिदिन उसकी महत्ता और प्रसिद्धि में निरन्तर वृद्धि होती गई।
उपरोक्त अध्ययन से निष्कर्ष निकलता है कि जैन मुनियों, मनीषियों, महात्माओं, जैन धर्मावलम्बियों तथा विद्वानों ने बिहार प्रदेश के नालंदा जनपद में बिहार शरीफ के निकट स्थित पावापुरी को महावीर की निर्वाणस्थली के रूप में मान्यता दी है। उसके समर्थन में वे कोई भौगोलिक, ऐतिहासिक, राजनैतिक, साहित्यिक, साक्ष्य नहीं प्रस्तुत कर सके, जिससे यह प्रमाणित हो सके कि महावीर की निर्वाण स्थली पावापुरी है । उल्लेखनीय तथ्य यह है कि यहाँ से प्राप्त पुरातात्त्विक भग्नावशेष, कलाकृतियाँ, मूर्तियाँ तथा अन्य सामग्रियों के साक्ष्य के आधार पर बुद्धकालीन पावा प्रमाणित नहीं हो पाती है। यहाँ के पुरातात्त्विक साक्ष्य केवल शाहजहाँ के शासनकाल तक पहुंचाने में समर्थ होते हैं। फाहियान एवं हनसांग के यात्रा-वर्णन में यहाँ का कोई संकेत प्राप्त नहीं होता है। ७वीं तथा १२वीं शताब्दी के बीच के जैन साहित्यकारों ने पावापुरी की विशद् व्याख्या की है।
कुल मिलाकर यह कहा जा सकता है कि पावापुरी से कोई ऐसा प्रमाण नहीं मिलता है, जिसके आधार पर इसे तीर्थंकर महावीर के निर्वाण स्थली के रूप में स्वीकार किया जा सके । यदि नालंदा जनपद स्थित पावापुरी वास्तविक पावा नहीं है, तो उस आधार का अनुसंधान आवश्यक है जिससे वास्तविक पावा का अभिज्ञान प्राप्त हो सके।
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