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प्रकाशकीय
डॉ० गोकुलचन्द्र जैन पार्श्वनाथ विद्याश्रम शोध संस्थान, वाराणसी के छोटालाल केशवजी शाह शोधछात्र रहे हैं। प्रस्तुत प्रबन्ध 'यशस्तिलक का सांस्कृतिक अध्ययन' सोहनलाल जैनधर्म प्रचारक समिति द्वारा प्रकाशित चौथा शोध-प्रबन्ध है । डॉ० जैन समिति के चौथे सफल शोधछात्र हैं ।
इस शोध-छात्रवृत्ति का कुछ लम्बा इतिहास हो गया है । बम्बई में स्व० सेठ छोटालाल केशवजी शाह से १९४८ में पांच हजार रुपये शोधकार्य के लिए मिले थे। पहले एक अन्य शोधछात्र को यह कार्य दिया गया। दुर्भाग्यवश तीन बार के परिश्रम के बाद भी उनका प्रबन्ध विश्वविद्यालय द्वारा स्वीकृत नहीं हुआ। तदनन्तर यह छात्रवृत्ति श्री गोकुलचन्द्र जैन को दी गयी । सन् १९६० में कार्य आरम्भ हुआ और प्रबन्ध तैयार होकर दिसम्बर १९६४ में बनारस हिन्दू विश्वविद्यालय को परीक्षार्थ प्रस्तुत कर दिया गया। प्रबन्ध स्वीकृत हुआ तथा उसके उपलक्ष में श्री जैन को पी-एच ० डी० की उपाधि प्राप्त हुई।
'यशस्तिलक' एक महान् ग्रन्थ है। उसकी अनेक विशेषताएं हैं। यह ग्रन्थ अपने काल में और बाद में भी आदरणीय रहा है। यह प्रबन्ध यशस्तिलक को सांस्कृतिक सामग्री का विवेचन प्रस्तुत करता है। इससे पूर्व भी विद्वानों ने इस ग्रन्थ की ओर ध्यान दिया है। डॉ० हन्दिकी का नाम विशेष रूप से उल्लेखनीय है। डॉ० जैन ने अपने प्रबन्ध में एक स्थान पर लिखा है कि यशस्तिलक के अध्ययन का यह श्रीगणेश मात्र है। डॉ० हन्दिकी जैसे अनेक विद्वान् जब यशस्तिलक के परिशीलन में प्रवृत्त होंगे, तभी उसकी बहुमूल्य सामग्री का ज्ञान-विज्ञान की विभिन्न शाखा-प्रशाखाओं में उपयोग किया जा सकेगा।
यशस्तिलककार सोमदेव सूरि की आस्था जैन है, परन्तु उनके लेखन का दृष्टिकोण विस्तृत है। संन्यस्त व्यक्तियों के लिए अनेक शब्दों का प्रयोग किया है । इनमें जैन नाम भी हैं।
साग-सब्जी के उल्लेखों में आलू जैसे जनप्रिय साग का अभाव है। इससे इस बात की पुष्टि होती है कि आलू भारतीय नहीं है। विदेश से आकर यहाँ भी फूला-फला है।
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