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________________ यशस्तिलक की शब्द- सम्पत्ति ३३३ संस्कृत कोषों में (मो० वि०) समाज सूतिकासन ( २२६।७ ) : प्रसूति गृह विज्ञान अर्थ दिया है । सुरवारण: (२४५।८ उत्त० ) : ऐरावत हाथी सागरः ( ३४९।२) : अश्व सामज: ( ४८५ । ५ ) : गज, सोमदेव ने गज के लिए सामज शब्द का प्रयोग कई बार किया है । सावित्रः ( ४६६ । १ ) : सूर्य सारणी (५२५।३ ) : कृत्रिम नदी, नहर सारसनम् (१५०।६) : करधनी सारंगः (३४९।३) : गज सालूरः (१४४।२) : मेंढक सिचय: ( १९ | १) वस्त्र सिताम्बुजम् (२११।९ ) : सफेद कमल सिद्धार्थकः (२२/९ ) : पीला सरसों सिद्धादेशः (२०१०) : सिद्ध पुरुष का कथन सिद्धायः (४२७।४): कर सिन्धुरद्विपः (५२४१) सिंह सुदर्शना ( १९४५ उत्त० ) : इस नाम को औषधि सुवर्णः (५३।३) स्वर्ण, राजकुल सुत्रता (१८६ । २ उत्त० ) : सहज दुहने वाली गाय । सुविदत्रम् (सुविदत्रवस्तुव्यस्तहस्तैः ३२४/५ ) : मांगलिक वस्तु सुधा ( ३५२/८ ) : जल Jain Education International : सुरसुरभिः ( १८५८ उत्त० ) कामधेनु सूनाकृत ( सूनाकृतो गृहमुपेत्य ससार - मेयम्, ४१५७ ) : श्रुतसागर ने इसका अर्थ खाटकिन् किया है । आजकल खटोक कहते हैं । सोभाजन (४०५४): सहजन वृक्ष सोमम् (१९६।३ उत्त० ) : हरीतिकी नामक औषधि, हरड़ सौखशायनिकः ( ३६६/५ ) : सुख शयन की बात पूछने वाला । सौरभेयः (६८।२) : बैल सौवस्तिक ( ४५२।१० ) पुरोहित : हरिण: (१८२/३ ) : स्वर्ग हरित वाहवाहनः (८५११ ) : सूर्य हरिहस्तिन् (१२५ उत्त० ) : ऐरावत ( इन्द्रका हाथी ) हल्लः (सोल्लासहल्लाननाः, २२७।३ ) : आशीर्वाद देने वाला हलम् (१३।४) : मित्र, हल हलम् (२९६।५ ) : पैरों की अँगुलियाँ हंसायिव (१२८ ७) हंस के समान : आचरण हिंजीकम् (६१७।१०) : नूपुर For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002134
Book TitleYashstilak ka Sanskrutik Adhyayana
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGokulchandra Jain
PublisherParshwanath Shodhpith Varanasi
Publication Year1967
Total Pages450
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Literature
File Size16 MB
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