SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 352
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ यशस्तिलक का सांस्कृतिक अध्ययन प्रयोग किया है । पिण्डी (पिण्डीभाण्डशालिनाम् ४२९ । ८ ) : खली । तैल निकालने के बाद प्रसवम् (अनवधिप्रचारप्रसवस्तवक, शेष बचा तिलहन का घूँछ -सीठी पित्तम् (उद्रिक्तपित्तास्विव, ६६।५ ) : ३२४ प्रष्ठी ( बाध्यमान प्रष्ठोहीपक्षम् १८५ । ३ उत्त० ) : कुछ दिन के गर्भ वाली गाय ४६५/२) : पुष्प प्रसंख्यानम् (पारिरक्षक इव प्रसंख्यानोपदेशेषु, २३६।२) : गणितशास्त्र प्रस्फोटनः (प्रस्फोटन स्फार मारुत २२६।५ उत्त० ) : सूर्य राजा पालिन्दी (प्रबलानलान्दोलितपालिन्दीसंततिभिः, १९९/६ ) : तरंग, लहर पिचण्डः ( कथं नामायं पिचण्डः स्फायताम्, ४०२।९ ) : पेट, तोंद पिचुमन्दः पाकः ( शुकपाक, सोत्कण्ठमुत्कण्ठस्व, ३५१.५ ) : महामत्स्य, श्रुतसागर ने सहस्रदंष्ट्र अर्थ किया है । पाण्डुरपृष्ठा (५६।५ उत्त० ) : कुलटा पाथोनिधिः (२५०/४) : समुद्र पामरः (पामरपुत्री च यस्य जनयित्री, ४३०।१) : नीच पारणा ( उपकल्पितपारणास्विव, २०१६।१ ) : उपवास के बाद का भोजन १०५/६ ) : प्रियाल वृक्ष पारदरसः (पारदरस इव द्वन्दपरिगतः पीलुः (मदतिलकित कपोलं पीलुकुलवि ११२०१): पारा ४६१।८ ) : गज पारिपुंख: ( पारिपुंख इवानात्मीनवृत्ति र, ४१।१ ) : बौद्ध ( पालिन्दमन्दिरोदरतार पालिन्दः तरोच्चार्यमाण, २४७१४ ) : नरेन्द्र, पुटकिनी (पुटकिनी पुटपटलान्त रंगम्, २०७/५ उत्त० ) : कमलिनी पुण्यजनः (पुण्यजनावासमिवाप्यराक्षसभावम्, ३४४०५ ) : यम, सज्जन व्यक्ति ( पिचुमन्दकन्दलसदनम्, ४०५ । ३ ) : नीम | पृ० ७/६ पर भी आयु पिप्पलिः Jain Education International ( गुडपिप्पलिमधुमरिचैः, ५१२।१० ) : पीपल ( छोटी पीपल) पिष्टातकः (विष्टातक चूर्णाः, ३३८।४) : विष्टातक चूर्ण । इसके लिए सोमदेव ने केवल पिष्ट शब्द का भी प्रयोग किया है (२२७/५) | पिथुरः ( पिथुरार्पितज रूथ मन्थर कपाल शकलम्, ४८।६) : राक्षस पिंजनम् ( २२३ ।९ उत्त० ) : रूई धुनने की पींजन पितृपति (१५१ ३ ) : यम प्रियालः (प्रियालमंजरीकणकलित, पुण्ड्रेक्षुः (पुण्ड्रेक्षुकाण्डमंडपसंपादनीभिः, १०३।२) : पौंडा, गन्ना सफेट मोटे गन्ने को अभी भी पौंडा, कहा जाता है । पुलाकः ( ३८६ । ७ ) : हाथी को खिलाई. जाने वाली रोटी । For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002134
Book TitleYashstilak ka Sanskrutik Adhyayana
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGokulchandra Jain
PublisherParshwanath Shodhpith Varanasi
Publication Year1967
Total Pages450
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Literature
File Size16 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy