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Bhagavati Sätra Bk. 11 Ch. 9
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तएणं से सिवे रायरिसी पढमछट्ठक्खमणपारणगंसि आयावणभूमीए पच्चोरुहइ पच्चोरुहित्ता वागलवत्थणियत्थे जेणेव सए उडए तेणेव उवागच्छइ तेणेव उवागच्छित्ता किढिणसंकाइयगं गिण्हइ गिण्हित्ता पुरत्थिमं दिसं पोक्खेइ पुरथिमाए दिसाए सोमे महाराया पत्थाणे पत्थियं अभिरक्खउ सिवं रायरिसीं अभिरक्खित्ता जाणि य तत्थ कंदाणि य मूलाणि य तयाणि य पत्ताणि य पुप्फाणि य फलाणि य बीयाणि य हरियाणि य ताणि अणुजाणउ ति कट्ट, पुरत्थिमं दिसं पसरइ पुरत्थिमं दिसं पसरइत्ता जाणिय तत्थ कंदाणि य जाव... हरियाणि य ताइ गेण्हइ गिण्हित्ता किढिणसंकाइयं भरेइ किढि० दब्भे य कुसे य समिहाओ य पत्तामोडं च गिण्हइ गिण्हित्ता जेणेव सए उडए तेणेव उवागच्छइ उवागच्छिता किढिणसंकाइयगं ठवेइ किढि० वेदि वड्ढे इ वे० उवलेवणसंमज्जणं करेइ उ० दब्भकलसाहत्थगए जेणेव गंगा महाणदी तेणेव उवागच्छइ तेणेव० गंगामहाणई ओगाहेइ गंगा जलमज्जणं करेइ जल. जलकीडं करेइ जल० जलाभिसेयं करेइ जला० आयंते चोक्खे परमसुइभूए देवयपिइकयकज्जे दब्भकलसाहत्थगए गंगाओ महाणईओ पच्चुत्तरइ गंगाओ० जेणेव सए उडए तेणेव उवागच्छइ तेणेव० दन्भेहि य कुसेहि य वालुयाएहि य वेइं रएइ बेइं रएत्ता सरएणं अरणि महेइ सर० अग्गि पाडेइ अग्गिं पाडेता अग्गिं संधुक्केइ अग्गिं० समिहाकट्ठाई पक्खिवइ समिहा० अग्गिं उज्जालेइ अग्गिं० अग्गिस्स दाहिणे पासे सत्तंगाई समादहे। तं जहा-सकहं वक्कलं ठाणं सिज्जा भंडं कमंडलु। दंडदारुं तहअप्पाणं अहे ताई समादहे। महुणा य घएण य तंदुलेहि य अंग्गि हुणइ अग्गिं हुणित्ता चरं साहेइ चरुं साहेत्ता बलिं वइस्सदेवं करेइ बलि० अतिहिपूयं करेइ अतिहि० तओ पच्छा अप्पणा आहारमाहारेइ ।
On completion of his first two days of fast, the monarchsage Śiva came down from the exposure ground with a view to break his fast. He wrapped his bark-cloth and came to his thatch. Then with his bamboo bowl etc., he worshipped the East and prayed, “Oh Mahārajā Soma, the ruler of the East ! May you protect me, Siva, who is now engaged in spiritual deeds and may you permit him to collect roots, trunks, bark, fruits, flowers, leaves, etc., which may be available in the East for his upkeep.” Having prayed like this, he