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________________ लेखकीय गुणस्थान सिद्धान्त जैन-दर्शन का एक महत्त्वपूर्ण सिद्धान्त है। यद्यपि इस सिद्धान्त का क्रमिक विकास परवर्ती काल में अर्थात् ईसा की प्रथम शताब्दी से पाँचवी शताब्दी के मध्य हुआ है फिर भी हम इसके महत्त्व और मूल्यवत्ता से इनकार नहीं कर सकते, क्योंकि लगभग पाँचवी शताब्दी से न केवल जैन कर्मसिद्धान्त को अपितु जैन-दर्शन की विभिन्न तात्त्विक एवं साधनात्मक अवधारणाओं को गुणस्थान सिद्धान्त के सन्दर्भ में ही विवेचित किया गया है। अत: यह सुस्पष्ट है कि गुणस्थान सिद्धान्त को समझे बिना इनमें से किसी भी अवधारणा को सम्यक् प्रकार से नहीं समझा जा सकता। प्रस्तुत कृति में जहाँ हमने एक ओर गुणस्थान सिद्धान्त के पूर्व बीजों को विभिन्न प्राचीन स्तर के जैन ग्रन्थों में खोजने का प्रयास किया है वहीं दूसरी ओर यह भी बताया है कि किस प्रकार इनसे गुणस्थान सिद्धान्त का विकास हुआ है । कृति के प्रथम अध्याय में गुणस्थान सिद्धान्त का उद्भव और विकास कैसे हआ यह स्पष्ट किया गया है। द्वितीय अध्ययन तत्त्वार्थसूत्र में गुणस्थान सिद्धान्त के पूर्व बीजों के रूप में आध्यात्मिक विकास की दस अवस्थाओं की चर्चा करता है । तृतीय अध्याय में तत्त्वार्थसूत्र में प्रतिपादित आध्यात्मिक विकास की दस अवस्थाओं का चित्रण श्वेताम्बर साहित्य में कहाँ-कहाँ और किस रूप में मिलता है, इसकी चर्चा की गयी है । चतुर्थ अध्याय मुख्य रूप से दिगम्बर साहित्य में गुणस्थान सिद्धान्त के बीजों की खोज करता है और बताता है कि दिगम्बर और यापनीय साहित्य में गुणस्थान सिद्धान्त के ये मूल बीज किस प्रकार सुरक्षित रहे हैं और उनसे किस प्रकार चौदह गुणस्थानों की अवधारणा का विकास हुआ है । पंचम अध्याय व्यक्ति के आध्यात्मिक विकास-क्रम को स्पष्ट करते हुए मुख्यत: आत्मा के विकास की तीन अवस्थाओं-बहिरात्मा, अन्तरात्मा और परमात्मा की चर्चा करता है । इस अध्याय में आध्यात्मिक विकास की प्रक्रिया के रूप में ग्रन्थि-भेद की अवधारणा को स्पष्ट किया गया है । षष्ठ अध्याय में चौदह गुणस्थानों के स्वरूप का विश्लेषण किया गया Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002129
Book TitleGunsthan Siddhanta ek Vishleshan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSagarmal Jain
PublisherParshwanath Shodhpith Varanasi
Publication Year1996
Total Pages150
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Karma, B000, & B030
File Size6 MB
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