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गुणस्थान सिद्धान्त : एक विश्लेषण
योगबिन्दु : हरिभद्र, सम्पादक मुनि जम्बूविजय जी, जैन धर्म प्रसारक सभा,
भावनगर ।
योगवाशिष्ठ : निर्णय सागर प्रेस, बम्बई, ई० स० १९१८ |
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राजवार्तिक : भट्टअकलंक, सम्पादक प्रो० महेन्द्र कुमार जैन, भारतीय ज्ञानपीठ, काशी, ई० स० १९५३ ।
विनयपिटक : अनुवादक राहुल सांकृत्यायन, महाबोधि सभा, सारनाथ ( बनारस ), ई० स० १९३५ ।
विशेषावश्यकभाष्य : जिनभद्रगणि, आगमोदय समिति, बम्बई, ई० स० १९२७ ।
शतकनामा : पंचकर्मग्रन्थ ( श्री लघुप्रकरण संग्रह ), शा० नगीनदास करमचंद, मु० पाटण हाल, बम्बई, ई० स० १९२५ ।
षट्खण्डागम ( सत्प्ररूपणा ) : जैन संस्कृति संरक्षक संघ, सोलापुर, पुस्तक १, द्वि० सं०, ई० स० १९७३ ।
सम प्रॉब्लेम ऑफ जैन साइकोलॉजी : टी० जी० कलघटगी, कर्नाटक विश्वविद्यालय, धारवार, ई० स० १९६१ ।
समयसार : श्री म० ही ० पाटनी, दिगम्बर जैन पार ट्रस्ट, मारोठ ( मारवाड़ ), ई० स० १९५३ ।
समवायांग : सम्पादक- मधुकर मुनि, जैन आगम प्रकाशन समिति, व्यावर ( राजस्थान ), ई० स० १९८२ ।
सर्वार्थसिद्धि : पूज्यपाद देवनन्दी, पं० फूलचन्द सिद्धान्तशास्त्री, भारतीय ज्ञानपीठ, काशी, ई० स० १९५५ ।
स्टडीज़ इन जैन फिलॉसफी : नथमल टाटिया, पार्श्वनाथ विद्याश्रम शोध संस्थान, वाराणसी, ई० स० १९५१ ।
स्पिनोजा इन दि लाइट ऑफ वेदान्त : डॉ० आर० के० त्रिपाठी, का० हि० वि० वि०, ई० स० १९५७ ।
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