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________________ २७६ : तीर्थकर, बुद्ध और अवतार : एक अध्ययन पुरुषों के जन्मों के साथ कालान्तर में उनके द्वारा समाज के उत्थान का लक्ष्य ही प्रयोजन के रूप में स्वाभाविक ढंग से आरोपित हो जाते हैं। ऋषभ आदि तीर्थंकरों के जन्मों के साथ भी इस प्रकार के साम्प्रदायिक प्रयोजनों का समावेश निहित है। "भागवत" में आदितीर्थंकर ऋषभदेव को विष्णु का अवतार माना गया है, क्योंकि वहाँ वे मुनि धर्म प्रकट करने एवं मोक्षमार्ग की शिक्षा देने के लिए अवतरित हए हैं। इन्हीं प्रयोजनों का समावेश जैन धर्म में भी मिलता है। प्रायः सभी तीर्थंकरों का मुख्य प्रयोजन श्रमण धर्म एवं मोक्ष की शिक्षा रहा है । "तिलोयपण्णत्ति' में सभी तीर्थङ्करों को मोक्षमार्ग का नेता कहा गया है। हरिवंशपुराण में ऋषभदेव को असि, मसि एवं कृषि आदि समस्त रीतियों का अन्वेषक एवं धर्मतीर्थ का प्रथम प्रवर्तक कहा गया है। महापुराण में कहा गया है कि ऋषभदेव ने श्रमण धर्म का प्रवर्तन करने के लिए, उनके दरबार में इन्द्र की नीलंजना नाम की अप्सरा, जो नृत्य करते हुए मर जाती है, जीवन की क्षणभंगुरता को बताया है। इस प्रकार उनका अवतार प्रयोजन स्पष्ट लक्षित होता है । जीवन की नश्वरता के फलस्वरूप इनके विरक्त होने पर इन्द्र आदि देवता इनको जैन धर्म के प्रवर्तन के लिए प्रोत्साहित करते हैं और इसके निमित्त वह दिगम्बर वृत्ति अपनाकर जैनधर्म का प्रचार करते हैं । __ इससे स्पष्ट होता है कि तीर्थङ्करों के जन्म लेने या अवतरित होने का मुख्य प्रयोजन जैन मुनियों के आचरण का आदर्श प्रस्तुत करना, आचार एवं नियम पालन को शिक्षा देना तथा जैनधर्म का प्रचार करना रहा है। १. भागवत ५/३/२०; ५/६/१२ २. तिलोयपण्णत्ति -४, ९२८ ३. हरिवंशपुराण पृ० ११६, ८/९२ ४. महापुराण ६,४ ५. "उठ्ठिय देव महाकुल कलयलि पुणु वंदारएहिं णिय णहयलि । चल्लिउ अणुभग्नो सिय सेविइ णाहिणराहिउ संहू मरु एविइ । तुरिउ चलंतु खलंतु विसंठुलु णीससंतु चलभोक्कलकांतलु ॥" -महापुराण, ७, २३-२४ ६. "मोह जालु जिह मेल्लिवि अंबरु झति महामुणि हवउ दियंवरु ।" -वही, ७.२६.१५ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002127
Book TitleTirthankar Buddha aur Avtar
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRameshchandra Gupta
PublisherParshwanath Shodhpith Varanasi
Publication Year1988
Total Pages376
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Philosophy
File Size14 MB
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