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३० : जैनधर्मं प्रमुख साध्वियाँ एवं महिलाएँ
रुक्मिणी', सत्यभामा :
श्रीकृष्ण वासुदेव की पति परायण, सर्वगुण सम्पन्न ये दोनों रानियाँ - तत्कालीन सामाजिक तथा राजनैतिक क्षेत्र में भी अपनी अलौकिक बुद्धि से कृष्ण को सहयोग देती थीं। एक समय अरिष्टनेमि कृष्ण को आयुधशाला (शस्त्र-शाला) में पहुँचे और कुतूहलवश शंख फूंका ।
कृष्ण वासुदेव का यह अद्भुत शंख कोई बलशाली ही उठाकर फूँक सकता है । यह कौन दूसरा ऐसा पराक्रमी पुरुष धरातल पर आ गया ? श्रीकृष्ण भी अपने प्रतिद्वन्द्वी का आभास होने पर चिन्तानुर हो गये ।
है कि वह लोक माता नहीं देव माता थी । (श्रीमद् भागवत, दशम स्कन्द, श्लोक ५६ ) । देवकी के गर्भ से जो भी पुत्र हुए थे सब बलवान् एवं देवत्व धारण किये हु थे । देवकी का जीवन बड़ा कष्ट साध्य था । वह एक जीवट देवी थी, जिसने कारागृह में अपनी प्रसव पीड़ा को सहन किया । देवकी अपने वचन पर दृढ रहने वाली स्त्री थी । जब उसे कंस के हाथों अपनी सन्तानों को मारे जाने का ज्ञान हुआ तब उसने अपने ममत्व को एक चुनौती रूप में स्वीकार किया । अपने पति वसुदेव की सान्त्वना पर अपनी सन्तानों का वियोग हृदय में सहती रही । यदुवंश की इस महिला ने कृष्ण युग में जितनी पीड़ा सहन की है वह अलौकिक है । देवकी को एक सच्ची माता का हृदय प्राप्त था । उसमें त्याग, बलिदान और धैर्य की अटूट भावना थी ।
पृथ्वी से पापी कंस के विनाश का श्रेय इसी महिमामयी माता की कुक्षि को प्राप्त हुआ है । देवकी के चरित्र चित्रण से पता लगता है कि इतिहास की यह महिमामयी महिला वैदिक धर्म और जैन धर्म की विविध - ताओं के अनुसार यद्यपि एक हो महिला रही होगी, लेकिन इसकी गाथा दोनों धर्मों में अलग-अलग रूप से वर्णित है । सनातन वैदिक धर्म की कथाओं के अनुसार देवकी के सभी पुत्रों को उसके भाई कंस ने मार डाला था जब कि जैन आख्यायिकाओं के अनुसार महासती देवकी आठ अलौकिक सन्तानों की माता थी ।
- १. अन्तकृद्दशा, १, ज्ञाताधर्मकथा ५२, निरयावलिका ५-१ आवश्यकचूर्णि प्र० पृ० ३५६ आदि ।
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: २. कल्पसूत्र, पृ० १७६, अन्तकृद्दशा १० स्थानांग ६२६, आवश्यक पू० २८, प्रश्नव्याकरण वृत्ति पृ० ८८.
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