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________________ प्रागैतिहासिक काल की जैन साध्वियाँ एवं विदुषी महिलाएँ : २१ और पांच सौ बाह्य परिषद् के साधुओं सहित संथारा पूर्ण कर चार अघाति-कों का क्षय करके सिद्ध, बुद्ध और मुक्त हुई।' पद्मावती __ आप बीसवें तीर्थंकर मुनि सुव्रत की माता तथा राजगृह के महाराजा सुमित्र की महारानी थीं। पूर्वभव के सुरश्रेष्ठ राजा के जीव ने घोर तपस्या कर तीर्थंकर नाम कर्म उपार्जन किया था। वही जीव रानी पद्मावती के गर्भ में उत्पन्न हुआ। माता ने चौदह महास्वप्न देखे तथा हर्षित हो गर्भ का सावधानी से पालन करने लगी। माता को उस समय विधिपूर्वक व्रत पालन की इच्छा बनी रहती थी, वह मुनि की तरह व्रत का पालन करती रही । गर्भकाल पूर्ण होने पर माता ने सुखपूर्वक पुत्र-रत्न को जन्म दिया। इन्द्र ने आकर माता को प्रणाम किया तथा नरेन्द्र व पुरजनों ने जन्मोत्सव मनाया। माता ने युवावस्था आने पर प्रभावती आदि श्रेष्ठ राजकन्याओं के साथ कुमार का विवाह किया। राज्य का उपभोग कर दीक्षित हुए। अनन्तर केवल-ज्ञान प्राप्त कर तीर्थकरत्व को प्राप्त किया। माता भी अपने कर्मों का क्षय कर चौथे माहेन्द्र देवलोक में उत्पन्न हुई।४ वप्रादेवी इक्कीसवें तीर्थंकर श्री नमिनाथ की माता तथा मिथिला नगरी के महाराजा विजय की महारानी का नाम वप्रादेवी था । पूर्वभव के सिद्धार्थ राजा का जीव माता वप्रादेवी के गर्भ में प्रवेश करने पर, मंगलकारी चौदह शुभ स्वप्न दिखाई दिये। योग्य आहार, विहार और आचार से महारानी दा ने गर्भ का पालन किया। समय पूर्ण होने पर माता वप्रादेवी ने कनक वर्ण वाले पुत्र-रत्न को सुखपूर्वक जन्म दिया। नरेन्द्र और सुरेन्द्र ने मंगल महोत्सव मनाया। जिस समय बालक गर्भ में था उस समय शत्रुओं ने मिथिला नगरी को चारों ओर से घेर रखा था। माता वप्रादेवी की उन पर सौम्य दुष्टि पड़ते ही शत्रु राजा का मन बदल गया और वह चरणों में झुक गया। अतः शत्रुओं के इस प्रकार से नमन करने १. आनन्दऋषिजी-ज्ञाताधर्मकथांगसूत्र-अ० ८, पृ० ३२२ २. समवायांग १५७, आवश्यकनियुक्ति २२९, तीर्थोद्गालिक ४८३ ३. आवश्यकचूर्णि-पृ० ११ ४. आ० हस्तीमलजी-जैन धर्म का मौलिक इतिहास-पृ० ५९८ ५. समवायांग १५७, तीर्थोद्गालिक ४८४ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002126
Book TitleJain Dharma ki Pramukh Sadhviya evam Mahilaye
Original Sutra AuthorN/A
AuthorHirabai Boradiya
PublisherParshwanath Shodhpith Varanasi
Publication Year1991
Total Pages388
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Biography, History, & Religion
File Size16 MB
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